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________________ धर्म-कर्म-रहस्य कर "पुनर्मा" इस ऋचा को तीन बार जपै। केवल शुद्ध ब्रह्मचारी से इस जप द्वारा स्वप्नदोष की थोड़ी पूर्ति हो सकती है किन्तु अन्य से यह सम्भव नहीं है और नानकर जो वीर्यपात किया जाता है उसकी पूर्ति होना तो असम्भव है। मैथुन आठ प्रकार के हैं जिन सबसे निवृत्त रहना चाहिए। लिखा है• स्मरणं कीर्तनं केलिः प्रेक्षणं गुह्यभापणम् । सङ्कल्पोऽध्यवसायश्च क्रियानिष्पत्तिरेव च ॥ एतन्मैथुनमष्टाङ्ग प्रवदन्ति मनीषिणः । विपरीत ब्रह्मचर्यमनुष्ठेयं मुमुक्षुभिः ।। स्मृति कुत्सित कामवासना के सम्बन्ध में स्त्री अथवा उसी प्रकार के अन्य विषय का स्मरण, उसको चर्चा, अनुचित कामात्मक हँसी-मज़ाक करना अथवा वार्तालाप, निकृष्ट कामहष्टिं से किसी को देखना, कामोत्तेजन करनेवाले विषय की एकान्त में किसी से बातचीत करना, कामोद्दीपन करनेवाला अथवा किसी प्रकार के मैथुन कासङ्कल्प करना, किसी प्रकार के कामाचार के लिये यत्न करना और प्रत्यक्ष कामाचार करना, ये. आठ प्रकार के मैथुन विद्वानों ने कहे हैं। मोक्ष की कामना करनेवालों को (मनुष्यजीवन का प्रधान उद्देश्य सव प्रकार के दुःख से नितान्त निवृत्ति अर्थात् मोक्ष है ) इन आठों का त्याग अवश्य करना चाहिए। यहप्रसिद्ध कथा है कि श्रीलक्ष्मणजी श्रीसीताजी की नित्य चरण
SR No.010187
Book TitleDharm Karm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndian Press Prayag
PublisherIndian Press
Publication Year1929
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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