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________________ ८७ जननेन्द्रिय-निग्रह पाणिग्राहस्य साध्वी स्त्री जीवतो वा मृतस्य वा । पतिलोकमभीप्सन्ती नाचरेत्किञ्चिदप्रियम् ॥१५६॥ कायन्तु अपयेद हे पुष्पमूलफलैः शुभैः । न तु नामापि गृह्णीयात्पत्यो प्रते परस्य तु ॥१५७|| मृते भर्तरि साध्वी स्त्री ब्रह्मचर्यव्यवस्थिता । स्वर्ग गच्छत्यपुत्रापि यथा ते ब्रह्मचारिणः ॥१६॥ अ०५ पति अनाचारी हो या परस्त्री में अनुरक्त हो, या विद्यादि गुणों से रहित हो तथापि साध्वी स्त्री को सर्वदा देवता की तरह अपने पति की सेवा करनी चाहिए। स्त्रियों के निमित्त न पृथक यज्ञ है, न व्रत है और न उपवास है। केवल पति की सेवा से वे स्वर्गलोक में पूजित होती हैं। स्वर्गलोक की प्राप्ति करने की इच्छा रखनेवाली सुशीला स्त्री अपने जीते वा मरे पति का कुछ भी अप्रिय कर्म न करे अर्थात् व्यभिचार आदि निन्दित आचरण से अपना और अपने पति का परलोक न विगाड़े। विधवा स्त्री को चाहिए कि पति के मर जाने पर पवित्र फल, फूल और मूल खाकर जहाँ तक हो सके इन्द्रिय-निग्रह रक्खे, परन्तु पर-पुरुष का कभी नाम तक न ले। पति के मरने पर जो पतिव्रता श्री ब्रह्मचर्य में स्थित रहती है, वह पुत्रहीन होने पर भी ब्रह्मचारी पुरुषों की भाँति स्वर्ग: लोक को जाती है।
SR No.010187
Book TitleDharm Karm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndian Press Prayag
PublisherIndian Press
Publication Year1929
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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