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सत्य न दूजा हो सके, सत्य सनातन एक । बिन्ः दर्शन बिन ज्ञान के, कल्पित हुए अनेक ॥
शुद्ध सत्य ही धर्म है, अनृत धर्म न होय । जहाँ पनपती कल्पना, धर्म तिरोहित होय ॥
मनन करे चिंतन करे, यही मनुज का धर्म । आँख मूंद पीछे चले, यह पशुओं का कर्म ।
शब्द बिचारा क्या करे ? अर्थ न समझे कोय। अर्थ बिचारा क्या करे ? धारण करे न कोय ॥
अपने-अपने ग्रंथ से, हुआ अमित अनुराग। ग्रंथि बन गए ग्रंथ ही, मनुज बड़ा हतभाग ॥
गीता हो या बाइबल, आगम तिपिटक होय । बोधि वचन होवे जहाँ, बुद्ध वचन ही होय ॥