________________
अन्धभक्ति ना धर्म है, नहीं अंध विश्वास । बिन विवेक श्रद्धा जगे, करे धर्म का नाश ॥
मान मोह माया मिटे, सहज सरल ऋजु होय। क्रोध मिटे कटुता मिटे, सही विपश्यी सोय ॥
पल पल जाग्रत ही रहे, शुद्ध सत्य का बोध । मन की समता स्थिर रहे, होवे दुःख-निरोध ।
क्षण क्षण मंगल ही जगे, क्षण क्षण सुख ही होय । क्षण क्षण अपने कर्म पर, सावधान यदि होय ।।
पर ही देखे सर्वदा, स्व देखे ना कोय । सम्यक् दर्शन स्वयं का, विपश्यना है सोय ॥
जो ना देखे स्वयं को, वही बांधता बंध । जिसने देखा स्वयं को, काट लिए दुख द्वन्द ॥