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धर्म : जीवन जीने की कला
तस्कर, स्वयं रक्षक । स्वयं रोगी, स्वयं चिकित्सक । अज्ञान से ज्ञान, मैल से निर्मलता, रोग से आरोग्य, दुःख से दुःख-विमुक्ति की ओर बढ़ते रहने का स्वप्रयास विपश्यना है । विपश्यना सही प्रयास है, सही प्रयत्न है । सम्यक् अभ्यास, सम्यक् व्यायाम है।
विपश्यना आत्म-संवर है। अपने मन पर मैल न चढ़ने देने का संवर । विपश्यना आत्म निर्जरा है । अपने मन के पुराने मैल उतार फेंकने की निर्जरा। नया मैल कोई दूसरा नहीं, हम स्वयं मोह-विमूढ़ित होकर चढ़ाते रहते हैं। अतः स्वयं ही प्रयत्नपूर्वक सतत जागरूक रहकर नया मैल न चढ़ने देना विपश्यना है। पुराना मैल किसी अन्य ने नहीं, प्रमादवश स्वयं हमने चढ़ाया है । इसे दूर करने की सारी जिम्मेदारी हमारी अपनी है, किसी अन्य की नहीं । अतः अपना पुराना मैल स्वयं उतारते रहना विपश्यना है । धीरज पूर्वक प्रयत्न करते हुए थोड़ा थोड़ा मैल उतारते रहेंगे तो एक दिन पूर्ण निर्मलता प्राप्त हो ही जाएगी। मन निर्मल होगा तो सद्गुणों से भर जाएगा; दूषित मन पर आधारित सारे शारीरिक रोग, सारे दुःख स्वतः दूर हो जाएंगे। विपश्यना आरोग्यवर्धिनी संजीवन औषधि है, चित्तशोधनी धर्म-गंगा है, दुःख निरोधगामिनी प्रतिपदा है, मुक्तिदायिनी धर्मवीथी है ।
विपश्यना शील, समाधि में स्थित होकर अन्तर्प्रज्ञा जाग्रत करने का पावन अभ्यास है। शनैः-शनैः प्रज्ञा पुष्ट करने का सत्प्रयास है। स्थितप्रज्ञ होने का शुभायास है । प्रज्ञा याने प्रत्येक प्रत्युत्पन्न स्थिति को प्रकार-प्रकार से जानना । विमोहिनी एकान्त दृष्टि त्यागकर सत्य-दर्शिनी अनेकांत दृष्टि द्वारा यथार्थ का सर्वांगीण निरीक्षण करना, तटस्थ होकर उसके सही स्वभाव का साक्षात्कार करना। यही विपश्यना है। विपश्यना निसंग दर्शन है, निलिप्त निरीक्षण है, नितांत अनासक्ति है। ___अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थिति का सामना होते ही उसे ठीक-ठीक देखे-समझे बिना सहसा अंध प्रतिक्रिया करना दुष्प्रज्ञता है । यही मानसिक क्षोभ है, उत्तेजना है, विकृति है, असंतुलन है, अशांति है; अतः दुःख है। परन्तु ऐसी हर अवस्था को विवेक पूर्वक देख-समझकर अपने मन की समता बनाए रखना प्रज्ञा है । आगत परिस्थिति का संतुलित चित्त से सामना करना धर्माचरण है, मंगल आचरण है। यही विपश्यना है । उत्पन्न स्थिति को हथियाने या हटाने की हठात्