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क्या पड़ा है 'नाम' में ?
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कैसा है ? जीवन-व्यवहार कैसा है ? कुशलं है या नहीं ? पावन है या नहीं ? आत्म-मंगलकारी और लोक-मंगलकारी है या नहीं ? यदि है तो धर्मवान ही है। जितना-जितना है, उतना-उतना धर्मवान है। यदि नहीं है तो उस व्यक्ति का धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं है । भले वह अपने आपको चाहे जिस नाम से पुकारे, भले वह चाहे जिस संप्रदाय का, चाहे जैसा आकर्षक बिल्ला लगाए फिरे । धर्म का इन सांप्रदायिक बिल्लों से क्या सम्बन्ध ? कोरे नाम से, विल्लों से हमें क्या मिलने वाला है ? किसी को भी क्या मिलने वाला है ? शराब भरी बोतल पर दूध का लेवल लगा हो तो उसे पीकर हम अपनी हानि ही करेंगे। यदि उसमें पानी भरा हो तो उसे पीकर प्यास भले बुझा लें, परन्तु बलवान नहीं बन सकेंगे। बलवान बनना हो तो निखालिस दूध पीना होगा । बोतल का रंग-रूप या उस पर लगा लेबल चाहे जो हो। इन नाम और लेबलों में क्या पड़ा है ? सांप्रदायिकता, जातीयता और राष्ट्रीयता का भूत सिर पर सवार होता है तो केवल बोतल और बोतल के नाम और लेबल को ही सारा महत्त्व देने लगते हैं । दूध गौण हो जाता है । धर्म गौण हो जाता है ।
आओ, इन नाम और लेबलों से ऊपर उठकर अपने आचरण सुधारें। वाणी को संयमित रखते हुए झूठ, कडुवापन, निंदा और निरर्थक प्रलाप से बचें। शरीर को संयमित रखते हुए हिंसा, चोरी, व्यभिचार और प्रमादसेवन से बचें। अपनी आजीविका को शुद्ध करें और जन-अहितकारी व्यवसायों से बचें। मन को संयमित रखते हुए उसे वश में रखना सीखें । उसे सतत सावधान, जागरूक बने रहने का अभ्यास कराएं और प्रतिक्षण घटनेवाली घटना को जैसी है, वैसी, साक्षीभाव से देख सकने का सामर्थ्य बढ़ाकर अन्तस की राग द्वेष और मोह की ग्रन्थियां दूर करें। चित्त को नितांत निर्मल बनाएं । उसे अनंत मैत्री और करुणा से भरें। बिना नाम-लेबल वाले धर्म का यही मंगलविधान है।