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धर्म सदृश ना कवच है, धर्म सदृश ना ढाल । धर्म - पालकों की सदा, धर्म करे प्रतिपाल ।
प्रलयंकारी बाढ़ में, धर्म सदृश ना द्वीप । काल अंधेरी रात में, धर्म सदृश ना दीप ।।
धर्म सदृश रक्षक नहीं, सखा, सहायक, मीत । चलें धर्म के पंथ पर, रहे धर्म से प्रीत ॥
जीवन में झंझा उठे, उठे शरण ग्रहण कर धर्म की, धर्म
तेज तूफान । बड़ा बलवान ।।
भले जगत प्रतिकूल हो, कोई मित्र न होय । धर्म सतत जाग्रत रहे, तो मंगल ही होय ।।
धर्म हमारा ईश है, धर्म हमारा नाथ । हमको भय किस बात का ? धर्म सदा ही साथ ।।