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धर्म : जीवन जीने की कला
दुष्कर्मों से बचते हुए अपने शील को अखंडित रखें। शील, समाधि और प्रज्ञा का यह विशुद्ध धर्म हम जितना सुरक्षित रखेंगे यानी हम जितने-जितने धर्मविहारी बनेंगे, उतने-उतने ही इस स्वयं पालन किए हुए, स्वयं धारण किए हुए, स्वयं सुरक्षित किए हुए धर्म द्वारा अपना सुरक्षण, संरक्षण पायेंगे। सचमुच
___"धम्मो हवे रक्खति धम्मचारिं ।" धर्मचारी की रक्षा धर्म स्वयं ही करता है । तो अपनी सही सुरक्षा के लिए स्वयं सच्चे धर्मचारी, धर्म-विहारी, धर्म-पालक बनें । इसी में हमारा मंगल, भला, कल्याण निहित है।