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३. धर्म का सार
ठीक से समझे हुए धर्म को ही ठीक से पालन किया जा सकता है। धर्म के सार को समझें । सार को समझेंगे तभी उसे ग्रहण कर पायेंगे अन्यथा भीतर का सार तत्त्व छोड़कर छिलकों में ही उलझे रह जायेंगे । उन्हें ही सार समझकर धर्म मानने लगेंगे ।
सार में सदा समानता रहती है। भिन्न-भिन्न छिलके हुआ करते हैं और जहाँ इन छिलकों को धर्म मान लिया जाता है वहाँ धर्म भी भिन्न-भिन्न हो जाते हैं । यह हिन्दुओं का धर्म, हिन्दुओं में भी सनातनी, आर्यसमाजी। यह बौद्धों का धर्म, बौद्धों में भी महायानी, हीनयानी। यह जैनियों का धर्म, जैनियों में भी दिगम्बरी, श्वेताम्बरी। यह ईसाइयों का धर्म-ईसाइयों में भी कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट । यह मुसलमानों का धर्म, मुसलमानों में भी शिया, सुन्नी आदिआदि धर्म ; भिन्न-भिन्न ही नहीं, परस्पर विरोधी भी। निस्सार छिलकों को महत्त्व दिये जाने के कारण यह विभिन्नताएँ हैं और इन्हें लेकर ही पारस्परिक विरोध उत्पन्न होते हैं। ___ कोई चोटी रखे हुए है, कोई दाढ़ी । चोटी मोटी है या पतली ? दाढ़ी मुड़ी मूछवाली या भरी मूछवाली ? कोई सिर के बाल बढ़ाए हुए है-बाल खूब सजे सँवरे हैं या रूखे-सूखे जटा-जटिल ? कोई सिर मुडाए हुए है तो वह भी उस्तरे से या चिमटी से ? किसी ने कान छिदवा रखे हैं तो उनमें बालियाँ पहनी हैं या कुण्डल या मुद्राएँ ? कोई तिलक लगाए हुए है तो तिलक-चन्दन का है या रोली का या भस्म का ? इस आकार का है या उस आकार का ? कोई माला पहने है तो वह रुद्राक्ष की है या चन्दन की या तुलसी की ? बीच