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धर्म : जीवन जीने की कला
अच्छे बौद्ध, अच्छे जैन, अच्छे मुसलमान, अच्छे ईसाई आदि बन ही जायेंगे । यदि अच्छे आदमी ही नहीं बन सके तो बौद्ध बने रहने से भी क्या हुआ ? हिन्दू, जैन, ईसाई, मुसलमान आदि बने रहने से भी क्या हुआ ?
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धर्म की इस शुद्धता को समझें और धारण करें । हम सब के जीवन में - शुद्ध धर्म जागे । निस्सार छिलकों का अवमूल्यन हो, उन्मूलन हों; शुद्ध सार का सही मूल्याकन हो, प्रतिष्ठापन हो । शुद्ध धर्म जीवन का अंग बन जाय । इसी में हमारा सच्चा कल्याण, सच्चा मंगल समाया हुआ है