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२० अायो सुख बांटें
जीवन भर हमने लोगों को कितना दुख बाँटा है !
अपनी मूर्खता से जब-जब मन में विकार पैदा किया तब-तब उसे दौर्मनस्य से भरा; और केवल मन से ही नहीं, बल्कि वाणी और काया से भी ऐसे दुष्कर्म कर दिए जिनसे लोग दुखी, संत्रस्त, संतापित हुए ! कितनों के दुखों का कारण बने हम ! कितनों की व्याकुलता का ! दुःख ही दुःख तो बांटा लोगों को हमने ! ___ अब अपना कोई पुराना पुण्य जागा जिसकी वजह से यह सार्वजनीन, सम्प्रदाय-विहीन अनमोल और मंगलकारी धर्म रत्न प्राप्त हुआ। इस धर्म सम्पत्ति ने कितना सम्पन्न बना दिया हमें ! कितनी विपन्नता धुली ! कितने विकारों से मुक्ति मिली ! कितने दुखों से छुटकारा मिला ! अप्रिय परिस्थिति में भी मुस्कराना आ गया ! मन में मैत्री और करुणा की उर्मियाँ लहराने लगी ! जीवन धन्य हो उठा । अरे, यही तो सुख है ! यही तो सच्चा सुख है !
आओ, बांटें ऐसा सुख सबको ! ऐसा सुख सबको मिले । ऐसा धर्म सबको मिले । जगत में कोई दुखियारा न रहे। सब अपने विकारों से मुक्त हो जायं, मन की गांठें खुल जायं, मलीनता दूर हो जाय । सभी निर्बर हों ! निर्भय हों ! निरामय हों ! निर्विकार हों ! निष्पाप हों ! निर्वाणलाभी हों !
इसीलिए आओ, सद्धर्म के प्रति असीम कृतज्ञता और अनन्य निष्ठा का भाव रखते हुए, प्राणियों के प्रति असीम मंगल मैत्री रखते हुए, आओ ! जनजन के भले के लिए और अपने भले के लिए भी, हम सभी मिलकर अपनी सम्मिलित शक्ति लगाएँ और ऐसा जीवन जीएँ जिससे अधिक से अधिक लोग