SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ७. ) धरम वो सारथी इंगाकि जिसकी मुक्त नारी है । सेवक तुम हो गए रख .जो अबतक धर्म ना जाना । 'घरम हिंसा में गहकर तैने अपनी गति विगारी है। ... .:. : .. || दाप मालिका ... प्रिय बंधु वर्गों ! २४ ३तीशंकर श्री महावीर स्वामी का धर्म चक्र चल रहा है, वे कार्तिक पण अमावस्या के सूर्य निकलने से पहले . मोन पवारे थे यानी सिद्ध होगा, उसी समय उनके गणधर श्री गौतम -श्यामों को केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ था चूकि केवल-शान होने पर कुछ रात्रि चाको थी, - देवों ने रत्नों के दीपक जलाए और मनुष्यों ने घी कपुरादि के। सवने कंदल शान और मोक्ष लक्ष्मी का पूजन किया इस यादगार में दीपमालिंका (दिवाली) सब दूर मनाया जाने लगा मगर कुछ काल पश्चात काल दोष से लक्ष्मी देवीको कल्पना होगई । वहुतसे तो यह विचार करते हैं कि लक्ष्मी देवी रात्रि में घर २ आती है सो उसके आगमन के लिये बड़ी तय्यारी करते हैं ताकि वह प्रसन्न होकर द्रव्य का वास गृह में कर देवे।. : :.. : :: . . . • दक्षण प्रांत, गुजरात प्रांत में तो पंचागों में भी इस दीपावली से नया वर्ष प्रारम्भ होता है । प्रायः सब जगह नई वाहियां इसी दिन से बदलते हैं । महावीर स्वामी श्री पावापुर जी सिद्ध क्षेत्र से निर्माण हुए थे । डाकनाना गिरियक जिन्ना . पटना वंगाल है । वह स्थान बड़ा सुन्दर है जो श्रानन्द यहां जाने पर प्राप्त होता है उसे केवली भगवान ही जानते हैं। हमारी वन्दना बारम्बार होवे। इस पवित्र दिन में उत्तम कार्य पूजा दान धर्मादि करने चाहिये। जूना आदि पापारम्म रोकना चाहिए । रुपयां इस पवित्र त्योहार को दिवालिया त्योहार न. धनावें। "जू समान इहलोक में, आन अनीत न पेखिये । ..: इस विसनराय के खेलको, कौतुक हु नाह देखिये ।। . -:. . . . जैनियों को अंपनी २ पहियों पर विक्रम सम्वत क .. साय महापौर सम्बत जो. अंव २४५२ कार्तिक शुक्ला १ से शुरु हुधा डालना चाहिये। उसके.साय २ श्री रिषम संवत ७ अंक का भी लिखना.चाहिये.यानी इस प्रकार:
SR No.010185
Book TitleDharm Jain Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarkaprasad Jain
PublisherMahavir Digambar Jain Mandir Aligarh
Publication Year1926
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy