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हो सकता है
के उसूलो बाल्य रल है
. . जैन धर्म के उसूलों को पढ़िए अयत्रा उनका मनन करिए तो ज्ञात होगा कि वह अमूल्य रल है । इस बात को सत्य प्रमाणिए कि यदि जैन धर्म में जीव लग जाये तो वह अपने को धन्य समझेगा । बाजार में हम एक धेने की हांडी लेने जाते हैं उसको खूब रंशारा देकर परीक्षा करते हैं कि फूटोन हो, जो पानी भरने पर सब निकल जावे । क्या भाइयों हमको भी धर्म परीक्षा नहीं करना चाहिए ? अवश्य करना चाहिए' यह हमारे परमव का सुधार करने वाला और सार वस्तु है। हांडी जो,असार उसकी जांचकरें और सार वस्तु"धर्म"को जांच न करें। इसका न्याय करना हर स्त्री पुरुपःका परम कर्तव्य होना चाहिए । पस इन चार रत्नों (देव गुरुं धर्म ,शास्त्र) का हर एक को. परखना उचित है प्रमादी नहीं रहना, यथावर धर्म वही जव धारण कर सक्ता है जो प्रमादी (आलसी) न हो और विनयवान हों। विनय से विशेष गुण प्रहण होते हैं जैसे एक बरतन में कड़ी कड़ी सूखीकोपले भरिए.और उस. ही वन में हरी नरम नरम कोपलें उसी जाति की भरिए तो यह स्पष्ठ ज्ञात होगा कि हरी हरी कोपलों की तादाद लकड़ी से कई गुनी जादा होगी। इसी तरह विनयवान जीव के हृदय में यह जैन धर्म .प्रवेश करता है धर्म का मूल ही "विनय". है, विनय पांच प्रकार का है। दर्शन. विनय-आत्मा और पर का भेद जानना, सम्यगदर्शन
के धारक.में प्रीति करना । ज्ञान विनय-ज्ञान का आदर करना बहुत आदर ते पढ़ना
ज्ञानी जन और पुस्तक का बड़ा लाभ मानना। चारित्र विनय--अपनी शक्ति प्रमाण चारित्र धारण में हर्ष
करना, दिन २ चारित्र की उंज्जलता के अर्थि विषय कषायनि को घटावना तथा चारित्र के धारकान के गुणनि में अनुराग स्तवन आदर करना सो.चारित्र विनय है । . .
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