________________
( 92 )
अर्थ - उनरजि. के. पुत्रा. को भी "बृहस्पति जो ने उनके
: पास जाकर मोह्या. भौर श्राज्ञादी, कि तुम सब "जैन धर्म के आसरे हो जाओ" ऐसा कहकर बृहस्पति जो भी वेद के बाहर
·
"
1.9
मत को चालते भए ।
ܐܪ
पाठको " | जरी " विचार कर देखो श्राप लोगों को मालुम
होगा कि वेदों में "बृहस्पति जी की बहुत प्रशंसा लिखी है इस से
B
9:
यह मतलब निकला कि वेदों के पहिले से बृहस्पति जी है और जैन धर्म, वेद और वृहस्पति जो दोनों से भी पहिले का रहा, जैनधर्म पहिले का हो नहीं वह "बृहस्पति जी जो कि ब्राह्मणों के अति मान्य विद्यासागर गुरु समझे जाते हैं उन्होंने भी "जैन धर्म केसरे हो जाओ" कहा है--:
-
जैनियों के प्रथम तीर्थंकर श्रोऋषभदेव जिनको "श्रादिनाथ" स्वामी कहते हैं उनके स्मरण करने का कितना महात्म्य लिखा है
शिवपुराण में लिखा है कि
अष्ट षष्टितीर्थेषु यात्रायां यत्फलं भवेत् । आदिनाथस्य देवस्य स्मरणेनापि तद्भवेत् ॥
अर्थ: अड़सठ (६) तीयों की यात्रा करने से जितना फल होता है उतना ही फल- श्रीआदिनाथ जी के स्मरण करन पर होता है।..
ܐܝ
यजुर्वेद संहिता 'अध्याय ९ वां श्रुति २५ में ऐसा लिखा है कि
वाजस्य न प्रसव आवभूवमाच "विश्वा भुवनानि >सर्वतः सनैमिराजा परियाति विद्वान् प्रजां पुष्टि - वर्धमानो अस्मै स्वाहाम्मा'
-इस अति में श्री नेमनाथ जी की प्रशंसा करते हुए आहुति दी है। आप लोगों को' श्रच्छी तरह मालुम होगा कि जैनियों: केन तीर्थकर का नाम श्री. नेमनाथ जी है..