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: .. महावीर स्वामी जैनियों के आखरी व.चौबीसवें तीकर थे। कीम के राजपूत क्षत्रिय, इक्ष्वाकुवंश के भूपण, रघुकुल के रत्न, इनका जहर पार्श्वनाथ से ढाई सौ वर्ष बाद हुआ था.। पैदाईश की जगह क्षेत्रीघंट बताई जाती है. जिसका राजा सिद्धार्थ था। ये उसी के लड़के थे मां का नाम त्रिशला था। और मुवारिक.थे वे मा, याप, जिनके...घर में. यह गोहर वेवहा पैदा हुआ था.। ये सिद्धार्थ के राजा के पारिस होकर नहीं आए थे पलिक ऋषभदेव के धर्म देश के राजा होने के लिए जहर किया था. : इफ्तदाहो से. चिच में तीव्र वैराग्य ,या, साधुओं की सङ्गव से खुश होते थे, योग और शान के';: मसाइलं की गुत्थी खूष मुलझाते, थे.! :: : :, . . . . . . . ... महावीर स्वामी. वली मादरजात थे.। दिलके नरम दयावंत धर्म और क्षमा मिजाज में कूट.२ कर भरी थी । इत्यादि ...
(२) श्रीयुत.महा.महोपाध्याय डाक्टर सतीशचन्द्र विद्याभूपण,M. A. PE, P..F.I.R.S. सिद्धांत महोदधि मिसपिल संस्कृत कालिज कलकत्ता ने तारीख २७.दिसम्बर सन् :१९१३ को वनारस में व्याख्यान दिया था जिसका सारांश' इस
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जैन साधु एक प्रशंसनीय जीवन व्यतीत करने के द्वारा 'पूर्ण रीति से' वृत, नियम, और इंद्री संयम का पालन करते हुए जगत के सन्मुख आरम' संयम का एक बड़ा ही उत्तम
आदर्श प्रस्तुत करते हैं. एक गृहस्थ, का जीवन भी जो जैनस्व को लिए हुए है इतना अधिक निर्दोप है कि हिंदुस्तान को
संसकाभिमान होना चाहिए.... :: .. .. ....: जैन साहित्य ने न केवलं धार्मिक विभाग में किंतु अन्य पिंभागों भी श्राश्चर्य जनक उचंति प्राप्त की है। न्याय और अध्यात्म विद्या के विभाग में इस साहित्य ने बड़े ही चे वि.