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कलम दावात कागज पास था, एक रुवाई लिखी और बादशाह के खिलअत को यों ही वापस कर दिया । सवाई यह थी ?
आकस कि तुरा कुलाह सुल्तानी दाद
मारा हम ओ अस्वाव परेशानी दाद। . · पोशानीद लवास हर किरा ऐने दीद ।
वे ऐवेश लिववास यांनी दाद ॥
भावार्थ, जिसने तुमको वादशाही ताज दिया उसी ने हमको परेशानी का सामान दिया जिस किसी में कोई पंग पाया उस को लिदास पहनाया और जिनमें ऐव न पाए उनको नंगपन का लिबास दिया. ..ये लाख रुपये का कलाम है और वह इन जैनी महात्माओं की पाक जिंदगी के हरवहाल है । फकीरों की उरयाली देखकर सुम क्यों नाक भी सकोसो हो ! उनके भावों को क्यों नहीं देखते ! सिद्धांत यह है कि प्रात्माको शारीरिक बंधन से और तालुकात के पोशिश से आजाद करके बिलकुल लंगा कर लिया जाय ताकि इसका निज रूप देखने में आये। वे आत्मज्ञानी थे आत्मा का साक्षात्कार कर चुके थे। यह ऐवक्री नात क्या है ? तुम्हारे लिए ऐव हो, बस इतनी ही पातपर तुम नफरत करते हो और हकीकत को नहीं समझते.. तुमको . क्या कहा जाय तुम ईश्वर कुटी में रहने वालों को अपने ऐसा आदा समझते हो यह तुम्हारी गलती है या नहीं १.