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पूजादि अधिकार
हम को नित्य भगवान की पूजादि करनी चाहिए। किसी २ स्थान पर किसी निजी कारण से कोई २ भाई या बहिन द्वेष या अज्ञानता के कारण, किसी किसी भाई या जाति को प्रक्षाल पूजा से मने करते हैं जिस से जादा द्वेष बुढो फेल कर धर्मः आयतनों पर आक्षेप होने लगता है सो ऐसे भाइयों से हमारा नमः निवेदन है कि ऐसी बुद्धि से निरन्तर पाप बंध होता है। और किसी शास्त्र में किसी को निषेध नहीं लिखा है सिवाय अङ्गहीन: इत्यादि । परन्तु सब को जिनेंद्र को पूजा प्रक्षाल का उत्साह दियाहै लेकिन शात्रोक्त रीति से होना उचित है पुरुष तो सर्वथा कर सकते हैं यहां यह और प्रकाश करते हैं कि "खी समाज भी पूजा { कर सकती है | देखिए पण्डित भूदरदास जी हृत "चरचा समा धान प्रथ" चरचा ८१ पृष्ठ: ९० पंक्ति ६
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( १ ) सुलोचना पुत्री राजा अकम्पन ने अष्टान्हिक पूजाकरी
महापुराण
मैना सुन्दरी ने भोपाल के गंदोदक लगाया । अगर, "अभिषेक पूजा नही की तो शरीर के लिए इतना गंदोदक कहाँ. से लाई।
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-(१) अजना देवी के भवांतर में कनकोदरी पट्टराणी श्री कण्ठ राजा अरुणनगर में प्रतिमा की स्थापना कर पजा करी । एक दिन कनकोदरी ने दूसरी रानी लक्ष्मीमती की प्रतिमा मंदिर से बाहर रक्खी सो संयम श्रीनाम अर्जिका के उपदेश स मंदिर में वापिस लें जाकर पूजा की । उस अभिनय से अजना: का इस जग्म में पवन जय पति से वियोग हुआ (देखो. पद्मपुराणा यानी जैन रामायण में )
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(४) वर्तमान में श्रविकाभ्रम बम्बई के चैत्यालय में वहाँ की स्त्रियां पूजादि करती हैं।