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भाई कुंछ थोड़ासा जानकर. स्वाध्याय छोड़ देते हैं और कहत हैं जो कुछ जानना था'ज़ान लिया अन्न स्वाध्याय : की जरूरत नहीं । हम पंडित मूदरदासजी की निम्न लिखित चौपाई का स्मर्गः उन्हें दिलाते हैं:-. : .. :.. . • जाननं जोग लियौ हम जान । तहां हमारे दिढ़ सरंधान ॥
यही सही. समकित को अङ्ग | काहे करें और श्रुत सङ्ग । जो तुम नीकें लीनों जान । तामें भी है बहुत विनान || तातैः सदा , उद्यमी रहो । ज्ञान गुमान भूलिजिन गहीं। • प्रिय पाठको ! यदि आप नित्य दिन रात्रि यानी. २१ घंटे के अन्दर आधा पत्र भी पढलेंगे तों साल भर में २०० पत्र यानी एक छोटे ग्रंथ की स्वाध्याय हो सक्ती है जैसे एक २ बूंद कर तालाव भरंजाता है । स्वाध्याय से अचिंत्य लाभ है . नुकसान किसी प्रकार का नहीं है। हम आपके खाने पीने में कोई वाधा नहीं डालते । :. . . . . .
. : भगवत प्रार्थना। .. ..
' (आगम अभ्यास होहू सेवा सर्वज्ञ तेरी । । सङ्गति सदी मिलौ साधरमी जनकी ॥
सन्तन के गुन को बखान यह बान परों ।
मैटो टेव देव १. पर.औगुन कथन की. ॥ . सवहीं सौं ऐन मुखदैन मुख वैन भाखों । । भावना त्रिकालः राखो भातमीक धनकी ।।
जौलों कर्म काट खोलो मोक्षके कपाटलाला। । ये हो बात हनौ प्रभु पूजौ आस मनी ॥.