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मिय: सज्जनो, पंडितों ! इस प्रकार शाजा धर्म की चरचा मुन यथावत श्रृद्धान करेंगे । इस कथन में जिन पिम्म घर२ थापने का प्रसंग पाय मैं अल्प वद्धिवाला दृष्टांत देता हूं कि नगर जैपुर में करीब इस प्रकार ३०० चैत्यालय हैं । मंदिर और चैत्यालय में कुछ फर्क नहीं है । चैत्यालय अनादि कल्याणकारी शब्द है यानी चैत्य-पातमा, आलय-जगह, भावार्थ, आत्म प्रदर्शन-प्राचीन समय में मन्दिर गृह को कहा थे:-जिन "मन्दिर। आज कल. चैत्यालय का सूचक
: श्रीयुत पद्यनन्द आचार्य कृत पद्मनन्द पंच विंशत शास्त्र अध्यायं ७ श्लोक २२ में लिखा है कि "किंदुरी के पत्र बरोबर ऊंचा चैत्यालय और जौ वरावर ऊंची जिन मतिमा जे करावें हैं तिनके पुन्य की महिमा कोन वर्णन कर सके और . तीर्थकर पद का वन्ध करे : हैं। इत्यादिः
इसी दृष्टांत पर हमारे पिताजी श्रीमान वावू चतुर्भुजजी गवरमेन्ट पेन्शनर हाथरस, ने श्री महावीर दिगम्बर जैन मंन्दिर सरे बाजार निजी दो दुकानें तोड़कर निर्माण सम्बत २४४६ में किया है !