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जिन शासन की प्रभावना करो घर घर जिन विच यांत्री, पक्ष अभिषेक की प्रवृत्ति करो जिस करि सब शांति हो. जो जिन धर्म का आराधन न करेगा और जिसके घर में जिन पूजन होगी दान न होगा उसे आपदा पोडेंगी जैसे भृंग को व्यांची भखे तैसे धर्म रहित को मरी भखेगी। अंगुठ प्रमागा भी जिनेंद्र की प्रतिमा जिसके विराजेगी उस के घर में से मरा भांजेगा जैसे गरुड़ के भय ग नागिनी भागे ये वचन मुनियों सुन शत्रुघन ने कही हे प्रभो जो थाप यांशा करी त्योही लोक धर्म में पवतेंगे। अथवर मुनि आकाश मार्ग विहार कर अनेक निर्वाण भूमि बंद कर - सीताजी के घर शाहार को थाए सो विधि - पूर्वक पारणा करावती भई, मुनि श्राहार नेय आकाश के मार्ग - बिहार कर गए और शत्रुधन में नगरी के बाहिर और भीतर अनेक जिन मन्दिर कराए घर घर जिन प्रतिमा पधराई नगदी सर्व उपद्रव रहित भई वन उपवन फल पुष्पादिक कर शोभित भए, वापिका सरोवरी कमलो करि मंडित सोहती भई पक्षी श करते भएकैलाश के त 'समान उज्वल मंदिर नेत्रों को श्रानन्दकारी विमान तुल्य सोहने भए और सर्व किसागा लोक संपदा कर भर सुख सो निवास करते भए गिरि के शिनर समान उ चै अनाजों के ढेर गावों में सोहने भए स्वर्ण रत्नादिक को पृथ्वी में विस्तीर्णता होती भई सकल लोक सुखी राम के राज्य में दे . समान अतुलं विभूति के धारक धर्म अर्थ काम विषे तत्पर होते भए - शत्रुघन मथुरा में राज्य करें राम के प्रताप से श्रनेक राजाओं पर श्राशा करता सोहे । इस भांति मधुरापुरी का ऋद्धि के धारी मुनियों के प्रताप कर उपद्रव दूर होता भया । जो यह अध्याय यांचे सुने सो पुरुष शुभ नाम शुभ गोत्र शुभ साता बेदनी का बंध करे जो साधुओं की भक्ति विषे अनुरागी होय और : साधुओं का समागम 'चाहे वह मन चांछित फल को प्राप्त होय इन साधुओं के सङ्ग पायकरं धर्म को भागध कर प्राणी सूर्य से भी अधिक दीति को प्राप्त
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होवें हैं ।..
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॥ इति वानवेंवां पर्व सम्पूर्णम् ॥