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महा दुख हुआ । तब उनको धीर बंधाया कि यह राम राज्य है किसी को दुख नहीं होगा। शंघन नगर में जाय घेठा जैसे योगी कर्म नाश कर सिद्ध पुरी में प्रवेश करे। तब राजा मधु.धन से महा कोप कर, आया. परन्तु शत्रुधन के भटों की रक्षा द्वारा .नगर में प्रवेश न कर सका जैसे मुनि के हृदय में मोह प्रवेश न कर सके और त्रिशूल से भी रहित होगया तथापि महा अभिमानी मधु ने संधि न करी और बुद्ध की को, उधमो दुमा । तब दोनों तरफ की सैनामों में युर होने लगा। .शत्रुधन के सैंना पति प्रतियक ने मा के पुत्र लवणार्णव को बायों से पक्षस्थत को लेदा सो, पृथ्वी पर माय पड़ा. और प्राणांत भयो तप पुत्र को देख राजा मधु तांतवक पर दौडा. सो शत्रुधन में ऐसे रोका जैसे नदी का प्रभाव पर्वत से रुके है । तब शत्रुधन के सामने कोई न ठहर सका नैसे जिन शासन के परिडतं स्यादवादी तिन के सन्मुल एकांतवादी न ठहर. सके। तैसे राजी शत्रुधनने मधु का धमतर भेदी जैसे अपने घर कोई पाहुना आवे और उसको भले मनुष्य भली भांति पाहुनगति करें तैसे शत्रधन ने शो कर उसकी पाहुणगति करता,भया अयानंतर राजा मधु, महा विवेकी शत्रुधन को दुर्जयजाम आपको त्रिशूल मायुध से रहित जान पुत्र की मृत्यु देश मौरभपनी माय भी अल्प जान, मुनियों के बचन चितारता भवा महो लगत, का, समस्त ही आरम्म महा हिंसा रूप दुमका देन हारा सर्वया स्याल्य है। यह:चण भंगुर संसार का चारित्र उस में मूढ जन राचे इस विषे धर्म ही प्रशंसा योग्य है और अंधर्म का कारण अशुभ कर्म प्रशंसा.योग्य नहीं महा निय यह पाप कर्म नरक निगोद का कारण है जो दुर्लभ मनुष्य देह को पाय धर्म विष बुद्धि नहीं धरे. हैं सो प्राणी मोर कर्म कर ठगाया अनन्त भव भमण करें है
मैं पापों में संसार असार-को- सार जाना, क्षण भंगुर शरीर . 'को भ्र-व जाना, आत्म हित.न. किवा, प्रमाद बिषे मवरता, रोग . १. समान ये.द्रियों के भोग भले जान भोगे, जब मैं स्वाधीन था
तवमुके घधि न आई, भयं अन्त काल माया अब क्या करू, घर को आग लगी उस समय तलाब खुदवाना कोन अर्थऔर सर्प ने डसा उसं समय देशांतर से.मन्याधीमतुलषांना और
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