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प्रकारनी लेखनशैलीए हस्तप्रतिओना विविध आकारो, तेमां लखाता अक्षरांको, प्रतोमा आलेखाता विविध शोभनो अने चित्रो, इत्यादि दृष्टिए पण आ प्राचीन ज्ञानभंडारो विद्वानोना अध्ययनना साधनरूप छे.. . . . . . ....
आ भंडारोमा एक सरखा विषयना ग्रंथोनी सिरिझो विद्यमान छे. सिरिझनो अर्थ सरर्खा कागळो, सरखा पानां, सरखी लिपि अने एकधारू सुंदर लखनार लहियाओना हाथे खायेली प्रतोनो संग्रह थाय छे. बधाय जैन आगमोनी एवी एक सिरिझ मोका मोदीना भंडारमा छे. वाडीपार्श्वनाथना ज्ञानभंडारमा जैन आगमो,'जैन धार्मिक प्रकरणो, जैन चरित्र ग्रंथो, दार्शनिक साहित्य, व्याकरण, कोष, अलंकार, छंदोग्रंथ, काव्य, नाटक आदि विषयोने लगती घणी सिरिझो छे. ओं भंडारनी स्थापना विक्रमना पंदरमा सैकाना अंतमा खरतरगच्छीय आचार्यश्री जिनभद्रसूरिए करी छे. ज्ञानभंडारनो महत्त्वनो संग्रह तेमणे ज लखाव्यों छे. जेसलमेरना महत्त्वपूर्ण ताडपत्रीय भंडारंनी स्थापना पण तेमना हाथे जेथई छे. आ उपरांत तेमणे पोताना युगमा घणे ठेकाणे ग्रन्थभंडारो स्थाप्या हतां.' - वाडीपार्श्वनाथनो ज्ञानभंडार ए जेसलमेरना ज्ञानभंडारनी ज आवृत्ति छे. जेसलमेरना संग्रहमा तत्त्वसंग्रह, काव्य मिमांसा आदि जे महत्त्वना ग्रंथो हता तेने नवेसरथी लखावीने तेओश्रीएं आ भंडारने महत्त्वनो अने उपयोगी बनाव्यो छे. मलयगिरि व्याकरण, सिद्धहेम व्याकरण उपरना स्वोपज्ञ बृहन्नयास, ढुंढिकाकक्षापटवृत्ति आदिनी प्राचीन पोथीओ आं भंडारमा छे.
- श्री संघ अने तपागच्छनो, आ बे भंडारो घणा मोटा छे. आमां घणुंज साहित्य छे, अने घणां ग्रंथोनी प्राचीन नकलो छे. ऐतिहासिक साहित्य आमां विपुल प्रमाणमां सचवायुं छे. अपभ्रंश, गुजराती, राजस्थानी आदि भाषाओनी कृतिओ पण आमा घणी छे. खास करीने तपागच्छनो भंडार आ द्रष्टिए घणोज उपयोगी छे. एमां श्री जिनहर्षसूरिनी घणी कृतिओ तेमना पोताना हाथे ज लखायेली छे. संघना भंडारमा दोढसो प्राचीन ताडपत्रीय प्रतो छे अने तपागच्छना भंडारमा स.१३९०मां लखेली हेमकाव्यानुशासन अने छंदोनुशासन आदि ग्रंथोनी पंदरेक ताडपत्रीय पोथीओ छे आ भंडार तपाचार्य श्री विजयदेवसूरिए स्थाप्यो छे एम कहेवामां आवे छे. - . :..:..: . . . . . . . . . . . . .
सागरगच्छनो भंडार नानी नानी कृतिओना संग्रहरूपे होवा छतां तेमांना विज्ञप्ति लेखो आदि सामग्रीनी दृष्टिए ए संग्रह महत्त्वनो छे. श्री यशोविजयोपाध्याय कृत अस्पृशद्गतिवाद ग्रंथनी प्रत आ भंडारमा ज सुरक्षित छे.
लहेरू वकील आदि भंडारोमा एकंदर सारो एवो प्रायः विक्रमना १५-१६मा शतकमां लखायेलो ग्रंथसंग्रह छे. जे संशोधननी दृष्टिए घणो महत्त्वनो छे.
संघवीपाडाना ताडपत्रिय भंडारनी स्थापना तपागच्छीय आचार्य श्री देवसुंदरसूरिए विक्रमना पंदरमा सैकामां करी छे. आ संग्रह 'लोढी पोसाळनो भंडारना नामे ओळखाय छे. लघु-लहुडी शब्द विकृत थईने"लोढी" शब्द बनी गयो छे आ अने श्री संघ तथा खेतरवसी आदिना ताडपत्रीय संग्रहमां केवी साहित्य संपत्ति छे तेनुं समुञ्चय निरीक्षण करी लईए. ___ आ संग्रह सातसोथी आठसो प्रतोनो छे. तेमां सेंकडो नाना मोटा ग्रंथो छे. विक्रमना बारमा सैकाना प्रारंभथी पंदरमा सैकाना अंत सुधीमा लखायेलो आ ग्रंथसंग्रहं छे. आ संग्रहमा प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, गुजराती आदिमां रचायेल ग्रंथराशि छे. आमां चित्र समृद्धि मोटा प्रमाणमा छे. जेनो उपयोग भाईश्री साराभाई नवाबे'चित्रकल्पद्रुम आदिमां अने डो. नोर्मन ब्राउन आदिए"स्टोरी ओफ कालक"मां को छे. साहित्य संग्रहनी दृष्टिए आ संग्रह घणोज किंमती के आमां जिनभद्रगणी क्षमाश्रमणकृत विशेषावश्यक, स्वोपज्ञ टीका, पंचसंग्रह स्वोपज्ञ टीका, शुभचंद्राचार्यकृत ज्ञानार्णव वि.सं. १२८४मां लिखित, भद्रेश्वरसूरिनी कहावलि, वादिदेवसूरिकृत चोरासी हजार स्याद्वादरत्नाकरनो द्वितीयखंड, अकलंकदेवनो प्रमाणसंग्रह, बौद्ध आचार्य श्री धर्मकीर्तिकृतहेतुबिंदुतर्कनी टीका, जयराशिकृत तत्त्वोपप्लवसिंह १ आचार्य श्री जिनभद्रसूरिजीनी असाधारण ज्ञानसेवारूप अनेक ज्ञानभंडारोनी स्थापना वगैरेनी विस्तारथी माहिती माटे जुओ. श्री आत्मानंद जैनसभा.
भावनगर द्वारा ईस १९१६मा प्रकाशित 'विज्ञप्ति त्रिवेणी' ग्रंथना संपादक मुनि श्री जिनविजयजीए लखेली माहितीसभर प्रस्तावना.-पं अमृतलाल भोजक
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