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________________ भाभाना पाठाना ज्ञानभंडारमा 'बृहत्कल्पसूत्र (मूल नियुक्ति-भाष्यसहित) सटीकनी वे के प्रण विभागमां लखायेली प्रति छे आ महाग्रथ घणां वर्षो पहेला पूज्यपाद आगमप्रभाकर मुनि श्री पुण्यविजयजीए छ भागमां संपादित प्रकाशित करेलो छे. तेओश्रीए आ कार्यमा जे प्राचीनतम ताडपत्रीय अने कागळनी प्रतिओनो उपयोग करेलो तेमां प्रस्तुत भंडारनी प्रति पण हती आ कार्यमा उपयोगमां लीघेली ताडपत्रीय आदि समग्र प्रतिओमा एक लाबा ताडपत्रीय पानामा समाय एटलो पाठ पडी गयेलो ते केवळ प्रस्तुत भाभाना पाडाना ज्ञानभंडारनी प्रतिए ज आप्यो छे प्रस्तुत ज्ञानमडारमां धर्मकीर्तिकृत 'प्रमाणवार्तिक' नामना बौद्धग्रथनी बीजी नकल तो विश्वमां क्यांय नथी. वर्तमानमा लभ्य भारतीय प्राचीन साहित्यमा निमित्तविषयक ग्रंथ अति अल्पसंख्यामां मछे छे. आ विषयना ये ग्रंथो अंगविजा अने जयपायड, अनुक्रमे पूज्यपाद आगमप्रभाकर मुनि श्री पुण्यविजयजीए प्राकृत टेकस्ट सोसायटी द्वारा अने पुरातत्त्वाचार्य श्री जिनविजयजीए सिंघी जैन ग्रंथमाला द्वारा सपादन करीने प्रकाशित करेल छे आ विषयनां लक्ष्मणभट्टरचित चूडामणिसार नामना ग्रंथनी ताडपत्र उपर लखायेल प्रति पाटणना सपवीपाडा ज्ञानभंडारमां छे. आ प्रथनी बीजी नकल अन्यत्र मळती नथी अमे अमारी प्रथमाळामा आ ग्रंथ ट्रंक समयमा प्रकाशित करीशं प्राचीनतम लिपिनी दृष्टिए पाटणना ज्ञानमडारोमा प्राय विक्रमना ११मा शतकना अन्त्य भागमा लखायेली सत्तरीचूर्णि अने श्री सूराचार्यकृत दानादिप्रकरण (विना बारमा शतकम लखायेली) ग्रथनी लिपि विशिष्ट महावराथी वचाय तेवी छे. बाकीनी ताडपत्र अने कागळ उपर लखायेली प्रतिओनी लिपि शतकवार लिपिना स्वरूप जेवी होवा छतां प्रत्येक प्रतिओ जोवामा आवेतो लिपिनी दृष्टिए अभ्यासीने कई ने कई विविध ज्ञातव्य जणाय तेवो सभव छे प्राचीन प्राचीनतम चित्रकळानी दृष्टिए पण प्रस्तुत भडारोमां विविध चित्रशैलीवाळा अनेक ग्रंथो छे, आमा ताडपत्र उपरनी चित्रकळानी आगवी विशेषता छे कागळ उपर लखायेल सचित्र कल्पसूत्र, सचित्र उत्तराध्ययनसूत्र व ग्रथोनी कोई कोई प्रति तो अतिसुंदर चित्रकळाना नमूनारूपे छे सुपार्श्वनाथचरित्रनी सचित्र प्रति तो अपेक्षाए खूब ज महत्त्वनी चित्रकळातो वारसो धरावे छे संपूर्ण चित्रविभागवाळु एक विज्ञप्तिपत्रनु ओळीयु पण पाटणना भंडारमां छे आनो लेखविभाग वर्षो पहेला जुदो पडी गयेलो ते नथी आ विज्ञतिपत्रना ओळीयांमां ते समयना जेसलमेरना वर्णनने चित्रित करेलु के सिरोही, जोधपुर व अनेक स्थानोमांथी लखायेला सचित्र विज्ञप्तिपत्रो तो मळे छे, पण जेसलमेरनगरनां भावोने दर्शावतुं विज्ञप्तिपत्र तो प्राय अन्यत्र नथी, अथवा मारी जाणमा नथी चिकित्सक अभ्यासी विद्वानो तो प्रस्तुत प्रकाशनमा नोधेला ग्रंथोनी सूचि व जोईन पोताना अनुभवथी समग्र ग्रंथसग्रहोनी उपयोगिता समजी शके ज अहीं तो तथाप्रकारना अभ्यासी अने जिज्ञासु वर्गनी जाण माटे ज पाटणना ज्ञानभडारोनी, तेमा सुरक्षित ग्रंथोनी, ग्रथोनी लिपिनी, ग्रथगत चित्रकळानी तेमज केटलीक विशेष नोंधरूप माहितीनी जाण माटे अतिसंक्षेपमा मात्र दिशासूचन कर्तुं छे. प्राचीन ग्रथना सबंधमां लख्या पछी केवळ पाटणना ज नहीं, किन्तु विद्यमान समग्र प्राचीन ग्रंथभंडारोना ग्रंथोमां एक आगवी महत्त्वनी सामग्री छे ते जगावु छु- मोटा भागना ग्रथनी प्रशस्तिमा ते ते प्रथना रचयिता पोताना परिचय माटे 'जे विशेष हकीकतो आपे छे ते ग्रन्थकारंनी प्रशस्तिमा, तथा जे ग्रंथ लखाववा माटे जे महामना धनीए अर्थादिनी व्यवस्था करी होय ते ग्रंथ लखावनारनी प्रशस्तिमां ऐतिहासिक, सास्कृतिक, धर्माचरणमा अने सर्वजनसेवाना कार्यमा प्रेरणाप्रद वने तेवी अनेकविध महत्वनी सामग्री मळे छे आ प्रशस्तिओमा, लखावनार गृहस्थना तथा लखाववा माटे उपदेश आपनार धर्मगुरुना, तेमज बन्नेना पूर्वजोना विविध सुकृतोनी अनुमोदनीय आचरणीय अने प्रेरणीय हकीकतो आवे छे. आवा सत्कार्यों करनार करावनार ते ते गृहस्थ अने धर्मगुरुनो शुभाशय तो ते समयनी अने भविष्यमा थनार योग्य व्यक्तिओने प्रेरणादि माटे ज होय आम छता अनादिना अध्यासना कारणे व्यक्तिविशेषने कदाच अल्गाधिकमात्रामां मानकषाय स्पर्शे तो पण ते शुभकरणीनी अपेक्षाए गौण जगणाय- "एको हि दोषो गुणसन्निपाते निमज्जतीन्दो किरणेष्विवाङ्क ।" कालिदासकृत कुमारसभव काव्य अर्थात् जेम चद्रना किरणोमां एक कलकनी गणना न होय तेम गुणोनी विपुलतामां एकाद क्षतिनी गणना नहींवत् छे सूचित प्रशस्तिओमा धार्मिक कार्यों उपरात दुष्काळ आदिमा जनसेवाने लक्षीने विपुल द्रव्यव्ययनी प्रेरणा आपे तेवी पण लोकहितकारक हकीकतो छे 14
SR No.010181
Book TitleCatalogue of Manuscripts of Patana Jain Bhandara 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Jambuvijay
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationCatalogue
File Size15 MB
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