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________________ पं. श्री लालचंदभाईए अहीं सूचित ताडपत्र उपर लखायेला ग्रथो पैकी जे ग्रथो अप्रकाशित हता ते सर्वेनी नोंध पण 'प्रास्ताविक मां आपी छे. आ नोधमां जणावायेला अनेक ग्रंथो, आजे प्रकाशित-मुद्रित थयेला मळे छे आ मुद्रित ग्रंथोमा केटलाक एवा ग्रथो पण छे के जेने शास्त्रीय संशोधननी दृष्टिए पुनर्मुद्रित करवा जोईए. प्रस्तुत अमारा ग्रंथमा उल्लिखित समग्र ताडपत्रीय ग्रंथोमां केटला'क ग्रंथो तो एवा छे के जेनी नकल अन्यत्र मळती ज नथी. संक्षिप्त उदाहरण तरीके- १. श्री भद्रेश्वरसूरिकृत कहावली, २. विशेषावश्यकलघुवृत्ति = स्वोपज्ञा, ३. भट्ट लक्ष्मणकृत चूडामणिसार (निमित्तग्रंथ), ४. श्री सूराचार्यकृत दानादिप्रकरण, ५ योग्घमकृत कौटलीयराजसिद्धान्त (अर्थशास्त्र) टीका, ६. दामोदरगुप्तकृत शुभली(कुट्टिनी)मत, ७. कर्पूरचरित-भाण आदि नाटक विषयक चार ग्रंथ वगेरे केटला'क ग्रंथो एवा छे के, जेनी प्राचीनतम प्रति पाटणना ज्ञानभंडारोमा छे, मर्यादित दाखला तरीके- १. श्रीहर्षकृत नागानन्दनाटक, २ सत्तरीचूर्णि वगेरे. पाटणना ताडपत्रीय ग्रंथभंडारो पैकीना खेतरवसीभंडारमाथी थोडां वर्षो पहेलां केटला'क ग्रंथो चोराईने वेचाई गयेला. केटला'क डवाओमां एकथी वधारे ग्रंथो हता तेथी चोरायेला ग्रंथो पैकीना तेर ग्रंथो तो पाछा मळ्या ज नहीं आ तेर ग्रथोमां मोटाभागना ग्रथो विक्रमना तेरमा शतकमा लखायेला छे, आमां'कर्पूचरित-भाण आदि नाटकना विविध प्रकारनी रचनारूप चार ग्रंथो (एक पुस्तकमां समाविष्ट) पण छे, जेनी नकल अन्यत्र प्राय. मळती नथी. अलबत्त, आ चारेय ग्रथो गायकवाड्झ सीरीझमां वर्षों पहेला मुद्रित थयेला छे आ तेर ग्रंथो पैकी अही जणावेल प्राच्य विद्यामंदिर-वडोदरा तरफथी प्रकाशित सूचिमा खेतरवसीना पाडाना भडारनी २५ क्रमाकवाळी (अमारा प्रस्तुत प्रकाशनमा ३५ क्रमांकवाळी) त्रुटक प्रति सिवायना बार ग्रंथोनी माईक्रो फील्म, श्री लालभाई दलपतभाई भारतीय प्राचीन संस्कृति विद्यामंदिरमा छ ज. खेतरवसी भंडारना गुम थयेला तेर ग्रथोनी विगत नीचे मुजब छे, (आमां प्रथम क्रमांक 'गायकवाड्झ सीरीझ'ना प्रकाशननो छे अने बीजो क्रमांक अमारा 'शारदाबेन चीमनलाल एज्युकेशनल रीसर्च सेंटर'ना प्रकाशननो छे.) गा क्रमांक शा. क्रमांक ग्रन्थनाम पत्रसंख्या ज्ञानार्णव २०७ सप्ततिकाचूर्णि १२७ पंचागी आदि २५२ उपदेशमालाविवरण ४१३ कादबरीशेष उत्तरार्ध १४८ ३४ (२) आवश्यकनियुक्ति आदि १३५ + ३ + १५ =१५३ ४१ (१) शतकचूर्णि १४३ ४२ (२) १. कर्पूरचरित भाणे २ हास्यचूडामणि प्रहसन ३ त्रिपुरदाह डिम ४ किरातार्जुनीय व्यायोग हैमशब्दानुशासनबृहद्वृत्ति ३६०-६२८ उत्तराध्ययन २१६ १ कल्पसूत्र १-८७ २ कालकाचार्यकथा ८७-११२ हैमशब्दानुशासनवृहवृत्ति. आख्यात ३-४५५ . उपदेशमाला आदि ३३२ उपासकदशाग १, अन्तकृद्दशाग २, अनुनरौपपातिकदशाग ३, विपाकाग ४, अने प्रश्नव्याकरणांग ५, आ पाच जैनागम सूत्रो २ स्यान्नाटक, प्रकरण, भाण, प्रहसन, डिमः । व्यायोग-समवकारी, वीथ्यकेहामृगा (वीथी, अङ्क, ईहामृग) इति ।। २८४ ।। अभिनेयप्रकारा स्यु (२८५ प्रथम चरण) अभिधानचिन्तामणिनाममाला-देवकाण्ड १३०
SR No.010181
Book TitleCatalogue of Manuscripts of Patana Jain Bhandara 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Jambuvijay
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationCatalogue
File Size15 MB
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