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________________ किंचित् प्रास्ताविक समग्र विश्व अनेकविध सुसंस्कारोनी प्रेरणा आपनार संतो, विद्वानो अने धर्मगुरुओनी सत्कर्मभूमिरूप विश्वना अनेक गाम, नगर, धर्मस्थान तथा तपोवन हतां. आवुं जं एक स्वनामधन्य स्थान- नगर पाटण उत्तर गुजरातमां छे. प्राचीन समयमां आ नगर 'अणहिलपुरपत्तन' अथवा 'अणहिलवाडपत्तन' ना नामे प्रसिद्ध हतुं. 'आ नगर विद्याधाम हतुं' ते हकीकत जणाववा माटे आ नगरने 'सरस्वतीपत्तन'ना नामथी पण उल्लेख्युं होय तेम लागे छे. उ.त. जुओ प्रस्तुत ग्रंथना प्रथम भागमां आवेल ग्रंथसूचिगत ग्रंथांक ६९९ तथा ७६२नी पुष्पिका-प्रशस्ति आ नगरनी समीपमां ज सरस्वती नदी छे, तेथी पण आ नगरने 'सरस्वतीपत्तन'ना नामे जणाव्यं होय. प्रबंधोमां कोईक स्थळे आ 'सरस्वती नदी' अने 'वाग्देवता सरस्वतीनी' अभिन्नता जणावीने पाटण एक आगवु विद्यास्थान होय तेवो भाव जणावेल छे. प्रस्तुत पाटणना स्थापक चापोत्कट महाराज श्री वनराजने जैनाचार्य श्री शीलगुणसूरिजीनो सहयोग हतो. धर्मगुरुना 'संबंधमां उच्च संस्कार अने विद्या-सरस्वतीनी मुख्यता होय ज. तेथी पाटणना स्थापना अने ते पछी उत्तरोत्तर थयेल गूर्जरेश्वरोना समयमा विद्योपासनानी परंपरा रहे-वधे ते स्वाभाविक छे. आ रीते विविध विद्याशाखाओनो उत्कर्ष, विक्रमना बारमा शतकमां गूर्जरश्वर श्री जयसिंहदेव - सिद्धराज - ना समयमां थयो हतो आ हकीकत तथा पाटणना भंडारोनो संक्षिप्त पण माहितीसभर परिचय, अतिपरिश्रम अने खंतथी पाटणना ज्ञानभंडारोने सुव्यवस्थित करनार मारा गुरुवर्य विद्वद्वर्य आगम प्रभाकर मुनिभगवंत श्री पुण्यविजयजी महाराजजीए पोताना 'पाटणना भंडारो' शिर्षक लेखमा आपेलो छे, जे कोईक विशेष नोंध लखीने प्रस्तुत ग्रंथमा आप्यो छे. पाटणना ज्ञानभंडारो समृद्ध हता तेथी अन्यान्य जे जे गाम-नगरादिमां अपेक्षित ग्रंथोनी आवश्यकता होय ते ते गामनगरादिना आगेवान आदिनी सूचनाथी तेमने अपेक्षित पाटणना भडारोना ग्रंथोनी नकलो पण थती हशे आथी जाणी शकाय छे के, पाटणमां कुशळ लहिया अने तेमनी पासेथी समुचित काम लई शके तेवा अनुभवी गृहस्थ के मुनिभगवंतोनी पाटणमां उपस्थिति प्राय कायम माटे हशे ज. आना फलस्वरूप आजे अनेक गाम-नगरना भंडारोमाना अनेक ग्रंथो पाटणमा लखायाना उल्लेखो मळे छे. पाटणमा कुशळ चित्रकारो पणं हशे ज श्री लालभाई दलपतभाई भारतीय विद्यामंदिरमां सुरक्षित श्री लालभाई दलपतभाई ग्रंथसंग्रहमा एक सचित्र कल्पसूत्रनी विक्रम स. १५४७मां 'आबा' नामना वडनगरना नागर गृहस्थे लखावेली छे. आनो क्रमांक ४५६१ छे. आ प्रति पाटणमां लखायेली छे तेथी जाणी शकाय छे. के, पाटणमां कुशळ चित्रकारो पण हता. पाटणमां आवी परंपरा अल्पाधिक प्रमाणमा विक्रमना वीसमा शतक सुधी हती. परमपूज्य आगमप्रभाकर मुनिभगवंत श्री पुण्यविजयजी महाराजजीना अनुक्रमे गुरु अने प्रगुरु प.पू. मुनिभगवंत श्री चतुरविजयजी अने प. पू. प्रवर्तकजी श्री कांतिविजयजी महाराजजीना मार्गदर्शनथी पाटणना विविध प्राचीन ग्रंथोनी नकलो, अन्यान्य स्थानोना अग्रणीओनी अपेक्षाने लक्षीने लखाती हती, ए समयमां पाटणमा चालीस लहिया लेखनकार्य करता हता. पाटणना ज्ञानभंडारोनी आधारभूत ग्रंथसूचि करवा माटे व्यवस्थित कार्यनों आरंभ ईस्वीसन १९१५मां अतिपरिश्रमी विद्वान श्री चीमनलाल दलाल (C. D. Dalal) महाशये करेलो तेना फलस्वरूप पाटणना जुदा जुदा ज्ञानभडारोमां सचवायेली ताडपत्रीय समग्र प्रतिओनी सूचि, 'प्राच्यविद्यामंदिर- वड़ोदरा तरफथी गायकवाड्झ सीरीझमा ईस्वीसन १९३७मां प्रकाशित थयेली. आ ग्रथमा जैन विद्याना अधिकारी अने प्रगल्भ विद्वान पंडित श्री लालचंद गांधी (हाल दिवंगत) ए खूब ज खंतथी सूचिगत ग्रंथोनो जे परिचय 'प्रास्ताविक' रूपे संस्कृत भाषामा आप्यो छे एने जोवाथी पाटणना ज्ञानभंडारोमां सचवायेल प्राचीन प्राचीनतम ताडपत्र उपर लखायेला ग्रथोनी महत्त्वनी माहिती मळे छे १ पडित श्री लालचंद भगवानदास गाधी प्राच्य विद्यामंदिर- वडोदरा-माथी निवृत्त थया ते पछी पण तेओ घणा वर्षो सुधी विद्यमान हता. आ समयमां तेमना विशिष्ट अभ्यासने (मुख्यत्वे समग्र श्वेतावरं परपराना श्रमणोना कुल, गण अने गच्छादिनी तथा अनेक विद्वान जैनाचार्यादि मुनिभगवतोनी अनेकविध शुभप्रवृत्तिनी तेमज तेमना सत्तासमयनी प्रमाणभूत माहितीने) लगतु काम तेमनी पासेथी अने स्व डो श्री हीरालाल रसिकलाल कापडिया जेवा अधिकारी जैन विद्वान अने डो. वी एम कुलकर्णी जेवा प्राकृतभाषाना अधिकारी विद्वान पासे थी गुजराते मुख्यत्वे जैन समाजे, समुचित कार्य सोपीने आधारभूत सशोधनकार्यनो लाभ लीघो नथी ते एक शोचनीय वस्तु छे- एम हु मानु छु -11 ...
SR No.010181
Book TitleCatalogue of Manuscripts of Patana Jain Bhandara 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Jambuvijay
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationCatalogue
File Size15 MB
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