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महाधरि का जीवन-धर्म
उसका उत्सव करें अर्थात् उसे उसके तप का लाभ नही लेने देते, आप भी लाभ नहीं उठाते और उस तप को केवल धूल मे मिला देते हैं। महावीर के जीवन चरित्र में मेरे पढ़ने में नहीं आया कि उनकी भारी तपश्चर्या के मान में कहीं भी जुलूस निकाला गया हो । उल्टे ऐसी प्रसिद्धि से वे दूर भागते थे, ऐसी मुझ पर छाप पड़ी है। आप समझ सकेंगे कि इस पर से जुलूस में भाग लेने के रायचंद भाई के निमंत्रण को मैं क्यों नही स्वीकार कर सका ।
३५. मेरा विश्वास
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महावीर का - सब ज्ञानी पुरुषों का - जीवन मुझे ऐसे विचारो की ओर ले जाता है। इसका अर्थ यह न करें कि मुझ में ऐसी कोई योग्यता आ गई है, लेकिन इतना विश्वास हो गया है कि कभी भी ऐसी योग्यता प्राप्त किए बिना चल नही सकता और साथ ही यह श्रद्धा भी है कि सन्तों के अनुग्रह से ऐसी योग्यता प्राप्त करने की मुझ में शक्ति आ जावेगी । इसीलिए इतना कहने का साहस किया है । अन्यथा ये वाक्य तो अनधिकार पूर्ण ही माने जायेंगे |
३६. उपसंहार :
यह न माना जाय कि इसमें की हरेक वस्तु हरेक के लिए उपयोगी होगी । यह भी न मान लें कि मैंने जो कुछ कहा है वह सब सच ही है। आप पर छागू होती हों उतनी ही बातो पर