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भाषण
जनों का कल्याण साधना हो तो आप अपने कुटुम्ब का वातावरण प्रेम-युक्त करें। स्वार्थ-वृत्ति, क्षुद्र-वृत्ति स कुटुम्ब का वातावरण - अशुद्ध न करें। २५. महावीर दृढ़ निश्चयी और पुरुपार्थी थे
बाल्य-काल से ही महावीर में दीख पड़ने वाली एक दूसरी __ वृत्ति थी, वह है उनका पराक्रम, पुरुषार्थ और दृढ़ निश्चय । जैन धर्म
में ऐसा माना गया है कि क्षत्रिय ही तीर्थंकर पद के अधिकारी हो सकते हैं। इसका अर्थ मैं यह समझता हू कि तीर्थकर पद के मार्ग पर पुरुषार्थी और शूर पुरुष ही चल सकता है। यह विलकुल सच बात है कि जहाँ पुरुपार्थ नही वहाँ किसी भी महान् वस्तु की प्राप्ति नहीं होती। ऐहिक मार्ग या पारमाथिक मार्ग में जो भी महान् वस्तु आपको सिद्ध करनी हो, उसके लिए शूरता और पुरुषार्थ चाहिए हो । शूरता का अर्थ है उस वस्तु के पीछे दूसरा सब कुछ कुर्वान करने की तैयारी । जीना भी उसीके लिए और मरना भी उसीके लिए। पुरुषार्थ अर्थात् उस वस्तुको सिद्ध करने के लिए रात-दिन का प्रयत्न और दूसरो की सहायता की अपेक्षा न रखना, काऊसग्ग- , (कायोत्सर्ग) करके रहना, दिगंवर दशा तक अपरिग्रही हो जाना, उपसर्ग और परीपहो को सहन करना, किसी पर अग्लम्बित न रहना ये सब निश्चय महावीर में समाए हुए अथक पुरुपार्थ को प्रकट करते हैं। जो गुण सांसारिक जीवन में वड़ा बनने के लिए चाहिए वे ही गुण परमार्थ सिद्ध करने के लिए भी चाहिए। इन गुणोंवाला सांसारिक पुरुष वीर कहलाता है। इन्हीं गुणों का परमार्थ में उपयोग करने से श्री वर्धमान महावीर कहलाए।