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महावीर का जीवन-धर्म
शुद्धता है. यह स्पष्ट है । लेकिन अजामिल जैसा भी केवळ नास्वार्थ प्रेम के बल से मन्त-कृपा और इच्छा हो तो मृत्य के पहल शान्ति का - नुभव कर सकता है। देव-भक्ति, देशानुराग, भूनदया की जड बाल-काल में कुटुम्ब मे परिपुष्ट हुई प्रेस वृत्ति में है। यही प्रेम अधिक शुद्ध हा ओर विस्तृत क्षेत्र में फैले ती देव-भक्ति, देश-भक्ति भून-दया अहिंमा मे बदल जावगा। २३. वैराग्य क्या है?
नव वैराग्य क्या है ? वैराग्य अथात् कर्तव्य का त्याग अथवा अन्धनो का बर्दस्ती से त्याग अथवा अरु च नहीं है। लेकिन वैराग्य यानी स्वाथ का त्याग, सुखप्राप्ति की इच्छा का त्याग, भोग भोगने की इच्छा का त्याग है। २४. महावीर में तीन प्रेम और वैराग्य था:
यदि आप महागर स्वामी का जीवन-चरित्र देखेंगे तो उसमें तीव्र वैराग्य और तीव्र प्रेम दिखाई देगा। दूसरों के प्रति जूही की तरह कोमलता और अपने प्रति वन जैसी कठोरता दोनो साथ-साथ देखेंगे। और इन भावनाओं का पोपण कौटुम्विक वातावरण से हुआ दीखेगा। जैसे इनके कुटुम्ब में माँ-वेटे के बीच प्रेम था, वैसा ही भाई-माई के बीच भी। कहा गया है कि उनके बड़े भाई उन्हें घर में रखने के लिए ही उन्हें राजपाट सौप देने को तैयार थे। भाई के प्रति यह कैसी प्रेम वृत्ति है ! मैं आपसे अतःकरण से कहता हूँ कि शदि आपका अपना या अपने पालकों का अथवा दूसरे कुटुम्यो