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महावीर का जीवन-धर्म १. वर्तमान प्रवृत्तियाँ ___पहले तो मै आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आज जैसी जयंतियाँ मनाने के पीछे रहे हुए उद्देश्य पर हमें विचार करना चाहिए। आजकल हमें बोलने और लिखने का मानो पागलपन हो गया है। बोलने और लिखने के विविध प्रसंग हम हूँढ़ते ही रहते है। जयंतियाँ मनाना भी इसी बीमारी का एक प्रकार है। प्रायः इन प्रवृत्तियों में मुझे किसी भी तरह की गंभीर वृत्ति का अभाव लगा है। मुझे लगता है कि हम इस प्रवृत्ति का आयोजन इसलिए नही फरते कि हम जिस महान् पुरुप की जयंती मनाते हैं उनके प्रति हमारे हृदय में कोई उमंग या प्रेम हो अथवा उन जैसे होने की तीन इच्छा हो, बल्कि विनोद-मनोरंजन करने की इच्छा ही मुख्य होती है। ऐसी सभाओ के निमित्त बड़े जुलूस, अच्छे-अच्छे संवाद, संगीत और व्याख्यान सुनने को मिलते हैं, दो घड़ी आनन्द में बीतती हैं, इतना ही फल प्राप्त करने की इच्छा से ऐसी प्रवृत्तियों का आयोजन होता है। इसमें एक वंचना भी होती है। सभा बुलानेवाले और सभा में आनेवाले दोनो को यह भी भास होता है कि ऐसी जयंतियाँ मनाने से हम एक महत्त्व का काम करते हैं और उस महापुरुष की योग्य कदर करते हैं।
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