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भाषण
११. व्यापार मैं सुधार :
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इसका सीधा अर्थ यह है कि मनुष्य जाति को अपना व्यापार दुरुस्त करना है। झूठा - हिंसामय, अधर्ममय व्यापार समेट कर सच्चा - अहिंसा का धर्म का - व्यापार शुरू करना उचित है। जिन उद्योग-व्यापारों से लाभ की मात्रा बहुत बढ़ती है, छोटे व्यक्ति और निर्बल प्रजा का शोषण होता है और ठड़ाई छिड़े या चलती रहे तो अच्छा, ऐसी इच्छा होती है, उन उद्योगव्यापारों को बद कर देना चाहिये ।
१२. एक आदमी एक ही धंधा करे:
एक ही मनुष्य का अनेक प्रकार के उद्योग-धन्धे करना अधर्म है । मनुष्य अपने निर्वाह के लिए कोई भी एक धंधा खोज लें। अपनी सारी शक्ति और पूंजी उसी में लगा दे। परन्त एक ही व्यक्ति का जवाहिरात, कपड़ा, लाहा, तेल का कोल्हू मोटर और अन्य सवारियों आदि सब प्रकार के उद्योग करना बिना अधर्म-कर्म के नही हो सकता । क्योकि (असमें लाभ की काई मर्यादा नहीं है । और जहाँ लोभ है वहाँ अहिंसा सम्भव नही है ।
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१३. रुपया वांझ है :
सच तो यह है कि रुपया बोझ है। एक रुपया सौ वर्ष तक रख दीजिये, तो भी उस रुपये से दो अन्नियाँ भी पैदा नही होंगीं । यदि उस रुपये का उपयोग हम न कर सके और वह दूसरे के हाथ में चला गया, तो भी उसमें उससे दो अन्नियों पैदा करने की
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