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अहिंसा के नये पहाड़े . ११७ जितनी तरह के कारखाने खोले जा सके उतने खोले. जितने उद्योग बढाये जा सके उतने बढ़ाये, और सारी दुनिया में अपने ही माल की खपत कराये । हरएक ने एक-एक बाजार पर कब्जा कर लिया है। यह कहना गलत न होगा कि आज हरएक साम्राज्य इस प्रकार के व्यापारियो का संगठन है। प्रत्यक्ष लड़ाई भी इस तरह व्यापार का ही एक विषय हो रही है। कारण लड़ाई का साज-सरंजाम भी उद्योग और कारखाने की ही चीज है और उसके जरिये भी बाजारोंपर कब्जा किया जा सकता है। जंगी हवाई जहाज, मोटरें, टैंक, बस आदि सारी चीजें व्यापार के विषय हैं । उनकी खपत में व्यापारी का फायदा है। इसलिए लड़ाई शुरू होने से और जारी रहने से भी व्यापारी को खुशी होती है। उसे ऐसा मालूम होता है कि अच्छी कमाई का मौका हाथ लगा।
१०. शान्ति के उपासक ही हिंसक
इस दृष्टि से देखन से मालूम होगा कि आज की हिंसा के पाप के लिये प्रत्यक्ष लड़ाई में लड़नेवाले सिपाहियों की अपेक्षा व्यापारी ही अधिक जिम्मेवार हैं। फिर भी आश्चर्य तो यह है कि व्यापारी हमेशा ही स्वभाव से शांति-प्रिय माने जाते हैं। उन्हें
रक्तपात, मारपीट आदि बिलकुल नहीं आती। और फिर हमारे , देश में तो व्यापारी अधिकतर जैन, वैष्णव या पारसी होते हैं।
'तीनों शांति के उपासक हैं । जैन और वैष्णव तो 'अहिंसा परम धर्म र की माला जपने वाले हैं।