________________
समूहमपेक्ष्याऽवयवा उच्यन्ते, तेषु प्रमाण समवायः आगमः प्रतिज्ञा। हेतुरमानम् उदाहरणं प्रत्यक्षम्। उपमानमुपमानम्। सर्वेषामेंकार्थसमवाये सामर्थ्य प्रदर्शनं निगमनमिति। सोऽयं परमोन्याय इति। एतेनवाद जल्पवितण्डाः प्रवर्तन्ते नातोऽन्यथेति। तदाश्रया च तत्व
व्यवस्था।
___ इस प्रकार सत् हेतु में पांच गुण होते हैं- पक्षसत्व, सपक्षसत्व, विपक्षाऽसत्व, असतप्रतिपक्षत्व और अवाधितत्व । इनमें से किसी एक में दोष होने पर वह हेतु सदहेतु न रहकर 'हेत्वाभास' बन जाता है। हेत्वाभास भी पञ्चविध है- सव्याभिचार, विरूद्ध, सत्प्रतिपक्ष, असिद्ध और बाधित ।
३. उपमान
उपमिति रूप प्रमिति का उपदिष्ट वाक्यार्थ स्मरणात्मक व्यापार से युक्त कारण अर्थात् करण (साधन) को उपमान कहते हैं। यानि 'उपमीयते अनेन इति उपमानम' अर्थात् सादृश्यज्ञान को उपमान कहते हैं।
पूर्वानुभूति वस्तु के सदृश होने के कारण जहां वैसी वस्तु का ज्ञान हो उसे उपमिति कहते हैं:- यथा 'गोस्तथा गवयः।' इसलिये उपमान को 'संज्ञा-संज्ञि ज्ञान' कहा गया है।
४. शब्द प्रमाण
शब्दबोधात्मक प्रमिति का पदार्थस्मरणात्मक व्यापार से युक्त कारण अर्थात करण को शब्द (पदज्ञान) प्रमाण कहते हैं:- 'शब्दयते प्रतिपाद्यते अर्थः अनेन इति शब्द :शाब्दी प्रमा करणम्, उससे जन्य ज्ञान को शाब्दीरूप अनुभूति कहते हैं।'
'अन्यायदर्शन (वात्स्यायन भाष्य) पृष्ठ ३६ आचार्य दुढिराज शास्त्री (चौखम्भा सस्कृत संस्थान वाराणसी)
81