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वाले को 'जैन' कहते हैं। तथा उनके द्वारा अपनाये गये धर्म को जैन धर्म कहते हैं। जिन' शब्द का अर्थ है 'जीतने वाला' अर्थात जो व्यक्ति अपने इन्द्रियों पर तथा सभी प्रकार के विकारों पर विजय प्राप्त कर लिया हो उसे 'जिन्' कहते हैं। 'जिन' लोग स्वभाव सिद्ध, जन्म सिद्ध, शुद्ध, बुद्ध, भगवान नहीं होते हैं। वरन् साधारण प्राणिमात्र की तरह जन्म ग्रहण करते हैं तथा सभी विकारों पर विजय प्राप्त कर परमात्मा बन जाते हैं, अर्थात् ईश्वरत्व को प्राप्त होते हैं। ऐसे वीतराग व्यक्ति ही 'जिन' हैं तथा इसके द्वारा उपदिष्ट धर्म 'जैन धर्म' कहलाता है।
जैन अनुश्रुति के अनुसार जैन धर्म के आदि प्रवर्तक 'ऋषभदेव' थे और इन्हीं से जैन धर्म तथा परम्परा का प्रारम्भ है भगवान ऋषभदेव को जैन ग्रन्थों के अनुसार 'जिन' या तीर्थंकर मानते हैं। सम्पूर्ण जैनधर्म तथा दर्शन ऐसे ही चौबीस तीर्थंकरों की वाणी या उपदेश का संकलन मात्र है इन तीर्थंकरों की परम्परा में भगवान ऋषभदेव को आद्य तथा पार्श्वनाथ को २३वां और भगवान महावीर को अन्तिम तीर्थंकर माना जाता है जैन आचार्य परम्परा में जो चौबीस तीर्थकर हुये हैं उनका नाम इस प्रकार है-आदिनाथ (ऋषभदेव), अजितनाथ, संभवनाथ, अभिनन्दन, सुमतिनाथ, पद्मप्रभु, सुपार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभ, सुविधिनाथ, शीतलनाथ, श्रेयांसनाथ, वासुपूज्य, विमलनाथ, अनन्तनाथ, धर्मनाथ, शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरनाथ, मल्लिनाथ, या मल्ली देवी, मुनि सुवृत्, रमिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ तथा महावीर। इसी आचार्य परम्परा के द्वारा जैन सिद्धान्त अनादि काल से सुरक्षित है।
चौबीसवें तथा अन्तिम जैन तीर्थकर वर्धमान महावीर का जन्म आज से लगभग २५३३ वर्ष पूर्व ईसा पूर्व ५४० में तत्कालीन वैशाली जनपद के कुण्ड ग्राम में हुआ था। उनके पिता सिद्धार्थ एक लिच्छवी राजा थे तथा माता त्रिशला विदेह के राजा की बहन थी । जन्म के पूर्व माता ने १४ अति शुभ स्वप्न देखे थे' । बुद्ध की महावीर के बचपन
भबावन महाबीर की वाणी- प्रकाशन
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