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प्रिय लोकायत दर्शन ही चार्वाक दर्शन कहलाता है। अवैदिक दर्शनों के अन्तर्गत चार्वाक दर्शन का जड़वाद या भौतिकवाद सर्वाधिक प्राचीन है। यह मत कब से चला है यह निश्चित रूप से किसी ठोस प्रमाण के अभाव में नहीं कहा जा सकता है। किन्तु इतना तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि यह हमारे ज्ञान के विकास का सबसे प्रथम रूप है। ऐसी स्थिति में यह सबसे प्राचीन मत है ऐसा कहने में किसी को कोई आपत्ति नहीं है।
चार्वाक दर्शन के उदय के (प्रमाण) साक्ष्य उपनिषद दर्शन के पश्चात् और नास्तिक जैन तथा बौद्ध दर्शन के उदय के पूर्व के काल में मिलते हैं। 'उपनिषद् दर्शन' का उच्च विज्ञान वाद, वैदिक कर्मकाण्ड को ब्राहमणों द्वारा अपनी जीविका का साधन बनाकर उसका दुरुपयोग तथा यज्ञों में पशुबलि की प्रथा, उस समय की सामाजिक तथा राजनीतिक अव्यवस्था एवं अस्थिरता आदि के कारण चार्वाक मत का प्रचार हुआ।' यद्यपि इन्द्रिय सुखों के उपभोग की परम्परा उतनी ही प्राचीन है जितना मानव का उद्भव। इन्द्रिय सुखों के उपभोग की परम्परा अनादि काल से चली आ रही है और यह सदैव स्थिर बनी रहेगी क्योंकि यह मानव की नैसर्गिक प्रवृत्ति है। ईसा पूर्व आठवीं
और छठी शताब्दी के मध्य भारत में अनेक भौतिकवादी दार्शनिक और विविध भौतिकवादी विचारधाराएं थीं इन विचारधाराओं से ही लोकायत अथवा चार्वाक दर्शन का उदय हुआ।
देवताओं के गुरु बृहस्पतिदेव द्वारा प्रणीत होने के कारण इसका अन्य नाम 'बार्हस्पत्यदर्शन' भी है। संभवतः ये बृहस्पति सुरगुरु बृहस्पति से भिन्न रहे होंगे। किन्तु कुछ विद्वान मानते हैं कि ये सुरगुरु ही थे जिन्होंने छद्म रूप से असुरों के नाश के लिये इस मत का प्रतिपादन किया। छान्दोग्य उपनिषद के इन्द्र विरोचन और प्रजापति
सी०डी० शर्मा- भा०दर्शन पृ० २२