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कर्मकाण्ड पर आधारित ज्ञानकाण्ड पर आधारित (मीमांसा)
(वेदान्त)
न्याय वैशेषिक सांख्य योग कौटिल्य ने अपने ग्रन्थ अर्थशास्त्र में सांख्य योग और लोकायत को 'आन्वीक्षिकी विद्या' के अर्न्तगत उल्लिखित किया है।
'सांख्य योगो लोकायतं चेत्यान्तीक्षिकी' (१/२/१०) यहां सांख्य पद कपिल दर्शन, पातञ्जलयोग दर्शन तथा बादरायण का वेदान्त दर्शन इन तीनों का ग्रहण करता है। 'योग' पद न्यायवैशेषिक का तथा 'लोकायत पद 'चार्वाक' आदि अन्य अवैदिक दर्शनों का बोधक है।
वात्स्यायन मुनि ने 'योग' पद का प्रयोग न्यायसूत्र के (१/१/२६)के भाष्य में उक्त अर्थ को प्रकट करने के लिये किया है।
इस प्रकार हिन्दू मतानुसार भारतीय दर्शन आस्तिक और नास्तिक वर्गों में विभाजित है। आस्तिक सम्प्रदाय वेद को स्वतः प्रमाण मानते हैं और नास्तिक वेद को एक साधारण ग्रन्थ से ज्यादा कुछ नहीं मानते हैं। ये नास्तिक दर्शन मुख्यतया तीन हैं बौद्ध, जैन, चार्वाक। आस्तिक दर्शन जो सनातन धारा को स्वीकार करता है और षडाग के रुप में जाना जाता है। ये निम्न छः शाखाओं में प्रचलित हैं। सांख्य, योग, न्यायवैशेषिक, मीमांसा, वेदान्त । ये साधारणतया षड्दर्शन के नाम से (आख्यायित) विख्यात हैं।
नास्तिक दर्शन चार्वाक दर्शन
नास्तिक दर्शन के अन्तर्गत चार्वाक दर्शन का स्थान प्रमुख है। लोक में अत्यन्त
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