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________________ भावनाओं से पूर्णतया मुक्त हो जाता है । सम्पूर्ण विश्व को उसकी सम्पूर्णता में जानना ही उसका लक्ष्य रहता है । इस प्रकार दर्शन विश्व को उसकी समग्रता में समझने का प्रयास करता है । भारतीय-दर्शन की दृष्टि व्यापक है । यद्यपि भारतीय-दर्शन की अनेक शाखाएँ हैं। तथा उनमें मतभेद है फिर भी वे एक दूसरे की उपेक्षा नहीं करती हैं। सभी शाखाएं एक दूसरे के विचारों को समझने का प्रयास करती हैं। तथा विचारों की युक्तिपूर्वक समीक्षा कर किसी सिद्धान्त तथा निष्कर्ष पर पहुँचती है। इस उदार मनोवृत्ति का यह परिणाम है कि भारतीय दर्शन में विचार विमर्श के लिए एक विशेष प्रणाली की उत्पत्ति हुई । इसमें पहले पूर्व पक्ष होता है फिर उत्तर पक्ष होता है इसमें पूर्वपक्ष विरोधी मतों का प्रकाशन करता है जबकि उत्तर पक्ष सिद्धान्तों का प्रतिपादन करता है। इस प्रकार उपरोक्त भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं से स्पष्ट होता है कि सभी भारतीय दर्शन का एक ही मुख्य उददेश्य है दुःख की चरम निवृत्ति या परमानन्द की प्राप्ति । इन्ही उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सभी भारतीय दार्शनिक प्रवृत्त होते हैं। भारतीय दर्शन का वर्गीकरण - विधाएँ समय के साथ-साथ भारत में विभिन्न दार्शनिक सम्प्रदायों का प्रादुर्भाव हुआ । और यह प्रत्येक मुनि की अपनी अलग-अलग विचारधाराएँ थी। इतना तो निश्चित रूप से स्पष्ट होता है कि उपनिषदों के पश्चात अवान्तर काल में इच्छा संबंध विषय प्रयोजन इत्यादि के भेद से परम मूल तत्व के विषय में शनैः-शनैः यथामत वैविध्यता होती गयी वैसे - वैसे दर्शन के भी वर्गीकृत भेद होते गये जो अन्त न होकर आदि था । और काल क्रमेण इन भेदों के भी आवान्तर भेद होते गये और परिणामतः वैदिक और अवैदिक दर्शन संप्रदाय के रूप में देश में उत्पन्न हो गये ऐसा दर्शन मध्यकालिक व्याख्याकारों ने अपने सांप्रदायिक अखाड़े का प्रभुत्व स्थापित करने के लिए परस्पर विरोधपूर्ण विचारधाराएं उत्पन्न कर दार्शनिक संघर्ष को जन्म दिया । 35
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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