SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 347
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'ब्रह्मतत्व प्रकाशिका' नामक टीका लिखी है। यह टीका शांकर सिद्धान्तों पर आधारित है। इसके अतिरिक्त और भी तीन ग्रन्थ है- आत्म विद्धाविलास, कविताकल्पवल्ली और अद्वैतरसमञ्जरी। आयन्न दीक्षित ने १८वीं शताब्दी में ही सदाशिवेन्द्र के बाद अद्वैत वेदान्त को आगे बढ़ाने में आयन्न दीक्षित ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसके द्वारा रचित व्यास तात्पर्य निर्णय नामक एक ग्रन्थ ही उपलब्ध होता है। इन्होंने अद्वैतमत के प्रतिपादक के लिये उस समय सांख्य, मीमांसा, पातञ्जल, न्याय वैशेषिक, पाशुपत एवं वैष्णव मतों का निराकरण किया और शांकर मत का समर्थन किया। प्रायः बहुत से दार्शनिकों का विचार है कि १८वीं शताब्दी में ही अद्वैतवेदान्त में चिन्तन की मौलिकता में कमी की स्थिति परिलक्षित होती है किन्तु कुछ भी हो इतना तो स्पष्ट है कि अद्वैत चिन्तन की मौलिकता का हास असंभव है जो आज भी मुख्य रूप से प्रचलित है और वेदान्त के (अनुयायियों) प्रर्वतकों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है। स्वामी करपात्र (२०वीं शताब्दी) स्वामी करपात्री २०वीं शती के उत्तर भारत के एक मूर्धन्य अद्वैत वेदान्ती थे। उनके अनुयायी उन्हें अभिनव शङ्कर मानते है। उनका सन्यास का नाम हरिहरानन्द सरस्वती था उन्होंने जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से सन्यास दीक्षा ली थी। इनका जन्म १९०७ में प्रतापगढ़ जिले के भटनी में पैदा हुये थे। बाध प्रस्थान के ये मुख्य दार्शनिक है। इनके पिता का नाम श्री राम निधि ओझा था। गृहस्थाश्रम का नाम हरनारायण ओझा था। १७ वर्ष की आयु में वैराग्य वृत्ति अपनायी। करपात्री ने पं० जीवनदत्त से व्याकरण आदि का और स्वामी विश्वेश्वराश्रम से दर्शनशास्त्र और वेदान्त का अध्ययन किया। १६३१ में जगद्गुरु शङ्कराचार्य ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड ग्रहण 332
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy