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________________ साक्षि के विषय में कहा गया है कि साक्षित्व अविद्या दशा में ही रहता है- 'साक्षित्वम् अविद्यादशायामेव दृश्यापेक्षत्वात्' ।' वहीं नृसिंहाश्रम कहते है- अतएव द्रष्टत्वघटितं साक्षित्वं न स्वरूपम् अपितु उदासीन साक्षिरूपम् । तस्य बोधात्मकमेव निष्प्रतियोगिस्वरुपत्वात् । ' अद्वैत दीपिका में भामती प्रस्थान तथा विवरण प्रस्थान के संवाद को उत्कृष्ट रूप में दर्शाया है। निःसंदेह नृसिंहाश्रम नव्य अद्वैतवाद के पुराकर्ता थे। इनके प्रभाव से ही भट्टोजी दीक्षित अप्पय दीक्षित आदि अद्वैत वेदान्त में दीक्षित हुये थे । 'भेदधिक्कार' के कारण उन्हें सहज रूप से बाधप्रस्थान का भी पुराकर्ता माना जाता है। भेद धिक्कार पर निम्नलिखित टीकाएं है १. नारायण आश्रमकृत सत्क्रिया । २. अज्ञातकर्तृक भेदधिक्कार टिप्पणी । ३. पूर्णधारानन्द सरस्वतीकृत भेद धिक्कार सत्क्रियोज्जबल । ४. अज्ञातकर्त्तृक भेदाधिकारोपन्यास पुनश्च माध्व वेदान्ती नृसिंह देव ने भेदधिक्कार का खण्डन 'भेदधिक्कार न्यक्कार में किया है । नृसिंहाश्रम का मत है कि ईश्वर - जीव तथा जड़ के भेद में कोई प्रमाण नहीं है क्योंकि जो भी प्रमाण दिये जाते है वे सभी सदोष है । यथा माना भावाद युतश्च न भिदेश्वर जीवयोः । जीवानाम चितां चैवनात्मनो परस्परम् ।। भेदधिक्कार पृ० ८ ।। 1 अद्वैतदीपिका विवरण पृ० ४४१ 2 अद्वैतदीपिका पृ० ४४१ 326
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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