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________________ (१) सर्वप्रथम उन्होंने शैवमत और वैष्णव मत को एक करने का प्रयास किया अथवा कम से कम श्रीकण्ठ भाष्य पर "शिवाकर्मणिका' नामक टीका लिखकर तमिलनाडु के शैवमत को अद्वैतमत के सन्निकट लाने का प्रयत्न किया । (२) उन्होंने रामानुज के मतों का खण्डन करने वाले ग्रन्थ रामानुजशृंगभंग लिखकर बाध प्रस्थान को महत्व दिया। (३) अन्त में उन्होंने 'मध्वतन्त्र मुखमर्दन' लिखकर मध्व वेदान्त का खण्डन किया और बाध प्रस्थान की जो धारा माध्व वेदान्त के खण्डन में लगी थी उसको परिपुष्ट किया। इन कारणों से उनको बाध प्रस्थान और नव्य वेदान्त के अन्तर्गत रखा जा सकता है। 'मध्वतन्त्र मुखमर्दन' में कुल ६६ श्लोक है इस पर ग्रन्थ पर अप्पय दीक्षित ने 'मध्वमतविध्वंसनम्' टीका गद्य में लिखी है। इस ग्रन्थ में अप्पय दीक्षित ने यह दिखलाया है कि माध्वमत के लोग वैदिक मर्यादा का अपमान किये है। अप्पय दीक्षित ने अपने इस ग्रन्थ में मध्व के ब्रह्म सूत्र भाष्य के प्रथम पांच अधिकरणों का खण्डन है । अपने खण्डन का निष्कर्ष उन्होंने ६३वें श्लोक में दिया है जो इस प्रकार है आद्रियध्वमिदमध्वदर्शनं व्यध्वनं त्यजत् मध्वदर्शनम् । शाङ्करं अजत शाश्वतं मतं साधवः स इह साक्ष्युमाध्वः ।। इससे तात्पर्य है कि अभेद श्रुतियों का प्राबल्य भेद श्रुतियों से अधिक होता है। माध्व वेदान्त का मन्तव्य है कि स्वयं विष्णु अन्य अर्थ के बावजूद अनन्य कहे जाते है अर्थात् समस्त भेदों को मानते हुये भी माध्व वेदान्ती एकेश्वरवादी है । 1 तथाप्यानन्द तीर्थीयं मतमग्राह्यमेव नः । यत्र वैदिक मर्यादा भूयस्था कुलतां गता ।। 2 अनन्योऽप्यन्य शब्देन तथैको बहुरूपवान्। प्रोच्यते भगवान विष्णुरैश्वर्यात्पुरुषोत्तम ।। 316 (मध्वतंत्र मुखमर्दन - २) (माध्वमत विध्वंसन पृ० ६० )
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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