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मिथ्यात्त्व के विश्लेषण में प्रकाशात्मायति पद्मपाद से भिन्न मत मानते है। पद्मपादाचार्य शुक्ति आदि में रजतादि के सार्वत्रिक एवं त्रैकालिक मिथ्यात्व को नहीं मानते है। इसके विपरीत प्रकाशात्मा शुक्ति आदि में रजतादि के सार्वत्रिक एवं त्रैकालिक मिथ्यात्व का प्रतिपादन करते है।' विवरणकार ने मिथ्यात्व को अनिर्वचनीयता का ही समर्थक माना
ब्रह्म साक्षात्कार के साधन को लेकर यह ब्रह्मदत्त से अलग मत रखते है ब्रह्मदत्त मनन को मुख्य साधक न मानकर श्रवण को ही ब्रह्मसाक्षात्कार का साधन माना है। विमुक्तात्मा (१२००ई०)
विमुक्तात्मा किसी प्रस्थान विशेष से सम्बन्धित नहीं है। इनकी प्रमुख कृति 'इष्ट सिद्धि' है जो अद्वैत वेदान्त की एक मौलिक कृति है। विमुक्ता की तिथि विवाद ग्रस्त है। किन्तु उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर सिद्ध होता है कि यह १२वीं शती के बाद के नहीं हो सकते क्योंकि रामानुज ने अपने ग्रन्थ में 'इष्टसिद्धि' का उद्धरण दिया है और यामुनाचार्य (११००ई०) है।वे भी इष्ट सिद्धि की महत्ता को स्वीकार किया हैं। अतः इनका समय १०५० ई० के पहले होना चाहिये। आनन्दबोध विमुक्तात्मा के शिष्य थे। प्रो० सुरेन्द्रनाथ दास गुप्त विमुक्तात्मा की तिथि १२०० ई० मानते है।
इष्टसिद्धि अद्वैतवेदान्त का एक प्रकरण ग्रन्थ हैं। उस पर ज्ञानोत्तम ने विवरण नाम की टीका लिखी है। इष्टसिद्धि में आठ अध्याय है। इन अध्यायों के अवलोकन से स्पष्ट हो जाता है कि विमुक्तात्मा का इष्ट माया का विवेचन करना है। प्रतिपाद्य माया
'प्रतिपन्नोपाधौ त्रैकालिकनिषेध प्रतियोगित्वम्। ............. स्वनिष्ठ निरवच्छिन्न प्रकारता निरुपित निशेष्यता समानाधिकरणात्यन्ता
भाव प्रतियोगित्वम् मिथ्यात्वम् । - Lights on Vedanta P-181 से उद्धत प्रकाशात्मा का मत। २ पञ्चपादिका विवरण, पृ० १५६ (Govt. Oriental Manuscripts Library, Madras, 1958) 'पञ्चपादिका विवरण पृ० १०४–१०५
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