________________
शङ्कराचायात अद्वैतवादी आचार्य और उनके सिद्धात
शङ्कराचार्य ने संहिताओं, उपनिषदों, आरण्यकों, ब्राह्मणों, ब्रह्मसूत्र एवं श्रीमद्भागवत गीता के आधार पर जिस अद्वैतवाद सिद्धान्त की व्यवस्थित एवं सैद्धान्तिक स्थापना की थी, बाद में उनके शिष्यो-प्रशिष्यों ने भी अद्वैतवाद को सुदृढ़ता प्रदान करने में योगदान दिया। शङ्करोत्तर मुख्य आचार्यों में आचार्य पद्मपाद, सुरेश्वराचार्य, प्रकाशात्मा, सर्वज्ञात्ममुनि और वाचस्पतिमिश्र का महत्वपूर्ण योगदान है। इन महान आचार्यो का आविर्भाव ईसा की अष्टम एवं नवम शताब्दी में हुआ था जो अद्वैतवाद का स्वर्णकाल था। निःसन्देह आचार्य शङ्कर ने अपने भाष्यों में तर्कपूर्ण ढंग से अद्वैतवाद की स्थापना की थी किन्तु उपर्युक्त दार्शनिकों द्वारा अध्यास, मिथ्यात्व, अविद्या, जीव ब्रह्म सम्बन्ध, अविद्या निवृत्ति आदि सम्बन्धे पर अद्वैत विरोधी बौद्ध, न्याय आदि मतों का तर्कतः खण्डन किया तथा युक्तियुक्त ढंग से अद्वैतवाद की व्याख्या की है। शंकरोत्तर अद्वैत वेदान्तियों द्वारा रामानुज, मध्वादि वैष्णवों के द्वैतपरक युक्तियों का भी खण्डन किया। शङ्करोत्तर अद्वैत वेदान्तियों में शङ्कराचार्य के दो शिप्य सुरेश्वराचार्य तथा पद्मपादाचार्य ने अपने महत्वपूर्ण ग्रन्थर लिखकर अद्वैतवाद का विकास किया तथा इन आचार्यों के अतिरिक्त वाचस्पतिमिश्र, सर्वज्ञात्ममुनि, विमुक्तात्मा, प्रकाशात्मयति, श्रीहर्ष, आनन्दबोध, चित्सुखाचार्य अमलानन्द, विद्यारण्य स्वामी प्रकाशानन्द यति मधुसूदन सरस्वती, ब्रह्मानन्द सरस्वती नृसिंहाश्रम सरस्वती, अप्पय दीक्षित, धर्मराजा हरवीन्द्र और सदानन्द आदि प्रसिद्ध है।
उपर्युक्त प्रमुख आचार्यो में शङ्कर के शारीरक भाष्य पर वाचस्पति मिश्र की प्रसिद्ध 'भामती' नामक टीका है भामती के नाम पर भामती-प्रस्थान' कहलाता है। भामती पर अमलानन्द सरस्वती ने वेदान्त कल्पतरु नामक टीका लिखी है। पद्मपाद् द्वारा रचित शारीरक भाष्य मुख्यतः चतुःसूत्री पर, पञ्चपादिका नामक वृत्ति पर
277