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________________ है। मिथ्या वह है जो कभी रहे या कभी न रहे। यहा 'रहने' का अभिप्राय केवल 'प्रतीति' से है। कल्पित पदार्थ मध्य में भासित होने पर भी वस्तुतः आदि एवं अन्त की तरह मध्य में भी अविद्यमान ही है। अतएव माण्डूक्योपनिषद् कारिकार श्री गौडपादाचार्य जी ने कहा है- 'आदावन्ते च यन्नस्ति वर्तमानेऽपि तत्तथा।' आचार्य नृसिंह सरस्वती ने 'वेदान्त डिण्डिम' नामक ग्रन्थ में लिखा है यदस्त्पादौ यदस्त्यन्ते यन्मध्ये भाति तत्स्वयम् । ब्रह्मैवैकमिदं सत्यमिति वेदान्तडिण्डिमः ।। यन्नादौ यच्च नास्त्यन्ते तन्मध्येभातमप्यसत् । अतोमिथ्या जगत् सर्वमिति वेदान्तडिण्डिमः ।। अर्थात् जो आदि में है, अन्त में है, एवं मध्य में स्वयं भासित है वह एक मात्र ब्रह्म ही सत्य है, यह वेदान्त का डिण्डिम घोष है। जो आदि में नहीं, अन्त में नहीं, मध्य में भासित होने पर भी असत् मिथ्या ही माना गया है। अतः यह जगत् मिथ्या ही है। ऐसा वेदान्त का मत है। __ विश्व के प्रति सामान्यतः मनुष्य का दृष्टिकोण वस्तुवादी होता है। वह समझता है कि संसार में अन्य वस्तुओं के साथ उसकी भी सत्ता है और वे वस्तुएं उससे स्वतंत्र है। प्रो० मैक्समूलर के शब्दों– “अधिकांश मनुष्य जाति के लिये दृष्टिगत जगत् पूर्णतः सत्य है, वे उससे अधिक सत्य कुछ भी नहीं समझते है। संसार में जो कुछ इन्द्रिय प्रत्यक्ष का विषय है वह सत् समझा जाता है और इसके विपरीत असत्।' इसी दृष्टिकोण से शंकर ने मनुष्य के सामने उपस्थित और दृश्यमान वस्तुओं को सत् माना है तथा इसके विपरीत प्रकार की वस्तुओं को असत् कहा है किन्तु सत् के विषय में सामान्य दृष्टिकोण विश्वसनीय नहीं है। यदि जो कुछ दिखाई देता है, वहीं सत् होता 'श्री लेक्चर्स आन दि वेदान्त फिलासफी, पृ० १२६ २ शाङ्कर भाष्य, केनोपनिषद्-६-१२ 259
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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