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इसके अतिरिक्त आनन्द लहरी, गोविन्दाष्टक दक्षिणामूर्ति स्तोत्र, दशश्लोकी आदि भी शङ्कराचार्य की प्रामाणिक रचनाएं मानी जाती है।
(द) प्रकरण ग्रन्थ
आचार्य शङ्कर ने वेदान्त सम्बन्धी अनेक छोटे-छोटे ग्रन्थों की रचना की है। वेदान्त तत्त्व प्रतिपादक होने के कारण ये 'प्रकरण ग्रन्थ' कहे जाते है। आचार्य अद्वैत वेदान्त का पावन सन्देश सर्वसाधारण तक पहुँचा देना चाहते थे और इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये उन्होने प्रकरण ग्रन्थों की रचना की। जिससे वेदान्त को सर्वसाधारण के लिये सर्वसुलभ बनाने की चेष्टा की । प्रकरण ग्रन्थों की संख्या ४० तक मानी जाती है यथा— अपरोक्षानुभूति, आत्मबोध, उपदेश साहस्री, पंचीकरण प्रकरण, वाक्य वृत्ति, विवेक चूड़ामणि शतश्लोकी आदि ।
तन्त्र ग्रन्थ
आचार्य शङ्कर ने दो तन्त्र ग्रन्थों की रचना की है - (१) सौन्दर्य लहरी और (२) प्रपञ्चसार किन्तु कतिपय विद्वान इसे आचार्य का ग्रन्थ मानने में सन्देह प्रकट करते है। इस प्रकार ३२ वर्ष की अल्पायु में इतने विशाल वाङ्गमय का प्रणयन करना भारतीय मनीषा की अप्रतिम उपलब्धि है ।
६. मण्डन मिश्र और शङ्र का शास्त्रार्थ
आचार्य शङ्कर मंडन मिश्र से शास्त्रार्थ के लिये उत्कंठित थे। रास्ते में मंडन
मिश्र का घर पूछने पर दासियों ने उत्तर दिया
स्वतः प्रमाणं परतः प्रमाणं कीरांगना यत्र गिरं गिरन्ति ।
द्वारस्थनीडान्तर सन्निरुद्धा, जानीह तन्मण्डन पण्डितौकः । ।
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( शङ्करदिग्विजय ८ /६)