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चिन्मयः (४७) कलाधरः (४८) विश्वेश्वरः (४६) मन्दारः (५०) त्रिदशः (५१) सामरः (५२) मृडः (५३) हर्पः (५४) सिंहः (५५) गौणः (५६) वीरः (५७) अघोरः (५८) ध्रुवः (५६) दिवाकरः (६०) चक्रधरः (६१) प्रणयेशः (६२) चर्तुभुजः (६३) आनन्दभैरवः (६४) धीरः (६५) गौणपाद एवमात्रान्ये च आचार्य कपिलादारभ्य श्री शङ्करपर्यन्तम् एकसप्ततिः संख्या गुरुणां परिगणिताः। श्री गौणपादाद् श्री शङ्कराचार्य मध्ये सप्तगुरवः सन्ति। श्री विद्यार्णव के प्रथम श्वास में कहा गया है
च्छिष्याण क्रमं ज्ञात्वा स्वगुरुक्त विधानतः ।
स्मरणात् सिद्धिमाप्नोति साधकस्तु न संशयः ।। श्री गौणपाद के काल निर्धारण विषय में महान विवाद है। ईसा पूर्व आठवी सदी में ईशोत्तर सातवीं सदी पर्यन्त के बीच का समय माना जाता है। श्री प्रज्ञानन्द सरस्वती महोदय अपने ग्रन्थ वेदान्त दर्शन में ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी का समय निर्धारित किया है। श्री विधुशेखर भट्टाचार्य इनका समय सातवीं शती के पश्चात का माना है। जिस प्रकार काल निर्धारण के विषय में विवाद है उसी प्रकार गौणपाद की कृतियों को लेकर भी मतैक्य नही है।
१. माण्डूक्योपनिषत्कारिका (आगम शास्त्रम्) २. सांख्यकारिका भाष्यम् । ३. नृसिंहोत्तर तापन्युपनिपद् व्याख्या ४. श्री दुर्गासप्तशती टीका ५. सुभगोदयः
६. श्री विद्यारत्न सूत्रम इन ग्रन्थों में माण्डूक्य उपनिषद् कारिका ग्रन्थ श्री गौणपाद की प्रसिद्ध कृति है। यह ग्रन्थ अद्वैत सिद्धान्त की आधार शिला है। जिस प्रकार श्री मद्भगवद गीता के विषय में यह प्रसिद्ध है कि “गीता सुगीता कर्तव्याकिमन्यच्छास्त्रविस्तरैः” उसी प्रकार अद्वैतबोध के लिए यह दृढ़तापूर्वक कहा जा सकता है इस ग्रन्थ का सुगम अनुशीलन
'श्री मुरलीधर विरचित- श्री शङ्करात् प्रागद्वैतवाद, पृ० ३०५
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