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प्रसंख्यानम्
श्री ब्रह्मदत्त प्रसंख्यान को स्वीकारते है । दूसरे वेदान्ती जैसे 'दशमस्त्वमसि' इस वाक्य से साक्षात्कार होता है उसी प्रकार 'तत्वमसि' इत्यादि महावाक्य से ब्रह्मसाक्षात्कार होता है। ऐसा मानते है, किन्तु प्रसंख्यानवादी ऐसा नही मानते है ।
'प्रसंख्यान' शब्द का अर्थ 'नैष्कम्यसिद्धि' तथा उसकी टीका चन्द्रिका में वर्णित है— ‘नैष्कर्म सिद्धिचन्द्रिका टीका' में - प्रसंख्यानस्य चित्तैकाग्रयुपस्य।
श्री ब्रह्मदत्त मानते है कि 'तत्वमसि' इत्यादि वाक्य के सुनने से आत्मस्वरूप विषयक अखण्डाकार वृत्ति उत्पन्न नही होती है। इसलिये कि शब्दों में वैसी शक्ति है जिससे वैसी अखण्डाकार वृत्ति का उदय होता है ।
आचार्य भर्तृप्रपञ्च और मण्डन मिश्र भी प्रसंख्यानवादी थे। आचार्य भर्तृप्रपञ्च का साक्षात प्रसंख्यान पक्षीय वचन उपलब्ध नही होता है । केवल वृहदारण्यकोपनिषद्भाष्य वार्तिक में तथा नैघ्कर्म्य सिद्धि में उनका प्रसंख्यान खण्डन प्राप्त होता है। श्री मण्डनमिश्र ने तो ब्रह्मसिद्धि में बहुत बार प्रसंख्यान पक्ष को उपस्थित किया है। जैसेब्रह्मसिद्धि में— ‘साक्षात्प्रमिते ब्रह्मणि साक्षात्कारायप्रवृत्तेरिष्टत्वात् । (व्र० सि० सि० का० ११ का० पृ० १५६) ध्याननियोगवादी
श्री ब्रह्मदत्त ध्याननियोगवादी थे न कि नियोगवादी । नियोगवादी वह कहलाता है जो तत् त्वं पदार्थ के शोधन द्वारा ब्रह्म और आत्मा को एक मानता है जैसे भगवान शङ्कराचार्य और उनके अनुयायी । ध्यान नियोगवादी श्री ब्रह्मदत्त जीवनमुक्ति को नही मानते है । देहपात के अनंतर ही ब्रह्मप्राप्ति या मोक्ष संभव है । श्री मरलीधर पाण्डेय ने
" नैष्कर्म्य सिद्धि - ३/६०
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