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(३) यदि जीव परमात्मा का कार्य होने के कारण परमात्मा ही नही होगा तब परमात्मा से अतिरिक्त होने के कारण परमात्मा के ज्ञान से यह विज्ञान सिद्ध नही होगा, अथवा आत्मा ब्रह्म एक ही पहले था, इस प्रकार सृष्टि से पहले एकत्व का अवधारण होता है।
"जैसे देदीप्यमान अग्नि से तद्रूप सहस्रों चिनगारियां उत्पन्न होती है वैसे ब्रह्म से विविध जीव या पदार्थ उत्पन्न होते है।' इत्यादि वचनों से ब्रह्म से जीवों की उत्पत्ति सुनी गई हैं।
महाकवि कालिदास ने उस समय के प्रचलित सम्प्रदाय के सिद्धान्तानुसार यह कहा है कि
आत्मनमात्मना वेत्सि सृजस्यात्मानमात्मना।
आत्मनाकृतिना च त्वमात्मन्येव प्रलीयसे।। (कुमार संभवे २/१०) अर्थात् आप अपने को अपने में ही जानते है और अपने आप अपने को उत्पन्न करते है और जब अपना काम पूरा कर चुकते है तब अपने को अपने में लीन कर लेते है।
इससे स्पष्ट होता है कि परमात्मा जीवों को उत्पन्न करते है। श्री सुरेश्वराचार्य ने भी मानसोल्लास में जीव-जन्म के विषय में कहा है।
जगत
आचार्य ब्रह्मदत्त जीव के समान जगत् का भी जन्म ब्रह्म से मानते है जैसा कि 'तत्वमुक्ताकलाप' में ब्रह्मदत्त का मत कहा गया है- 'एकं ब्रह्मैव नित्यं तदितरदखिलं तत्र जन्मादिमाक्.... ।' इत्यादि (त० मु० क० २-१६)।
संक्षेप शारीरक की 'सुबोधिनी टीका' में ब्रह्मदत्त के मत में जगत अविद्यामूलक है- यह कहा गया है। मोक्ष और मोक्ष का साधन
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