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शङ्कराचार्य के द्वारा जिस प्रकार अविद्योपाधि शब्द का प्रयोग किया गया है वैसे ही भर्तृहरि ने असत्योपाधि का प्रयोग किया है- "सत्यं वस्तु तदाकारैर सत्यैरवधार्यते । असत्योपाधिभिः शब्दैः सत्यमेवाभिधीयते"।। (वा० प० १/२०-२१) मोक्ष
इस मत में परब्रह्म की प्राप्ति, परब्रह्म का लाभ, परब्रह्म का सायुज्य, मोक्ष कहा गया है। व्याकरण का महान प्रयोजन कहते हुए भर्तहरि ने कहा कि इस मोक्ष के लिए ही व्याकरण महान उपयोगी है।
'प्राप्त्युपायोऽनुकारश्च ........... (वा० प० १-५)
भर्तृहरि ने स्वोपज्ञवृत्ति में मेरा, मैं इस अहंकार की गांठ का अतिक्रमण करना ब्रह्म की प्राप्ति है ऐसा कहा है। यहां ब्रह्म की प्राप्ति सायुज्य मोक्ष है। जैसा कि कहा
है
'तदव्याकरणमागम्यपरंब्रह्माधिगम्यते' । (वा० प० १-२२) अर्थात् व्याकरण का ज्ञान प्राप्त करके परब्रह्म को प्राप्त किया जा सकता है। (वा० प० १-२२)
मोक्षसाधन
शब्दब्रह्म के सायुज्य रुप मोक्ष की प्राप्ति के लिये शब्द का वाच्यार्थ ज्ञान कारण है। उसमें व्याकरण परम साधन है। व्याकरण द्वारा जो शब्द का संस्कार होता है वहीं शब्दरूप परमात्मा की सिद्धि का उपाय है। इसलिये जो शब्द की षड्भाव विकार रूप प्रतिभा को जानता है वह शब्दरुप परब्रह्म का सायुज्य प्राप्त करता है जैसा कि भर्तृहरि ने कहा है- तस्माद् यःशब्द संस्कारः सा सिद्धिः परमात्मनः तस्य प्रवृत्तितत्त्वज्ञस्तद ब्रह्मामृतमश्नुते ।। (वा० प० १/१३२) अर्थात् शब्दों का जो संस्कार है, वह परमात्मा की सिद्धि है। इसकी प्रवृत्ति के तत्त्व का ज्ञाता व्यक्ति ब्रह्मामृत का भोग करता है। सूर्य
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