________________
शान्तरक्षित के तत्त्वसंग्रह में उद्धृत है। संस्कृत वाङ्मय में भर्तृहरि नाम के महान विद्वान के लिखे ग्रन्थ ये है- (१) भर्तृहरिशतकम् (इसके तीन भाग है शृंगारशतकम्, नीतिशतकम्, वैराग्यशतकम्) (२) वाक्यपदीयम् (३) भट्टि महाकाव्यम् ।'
___ इस काव्य के निर्माता के बारे में विवाद था पर यह विवाद अब समाप्त प्राय है। नवीनतम कोई भर्तृहरि इसका लेखक है ऐसा मान लिया गया है। शतकत्रयं और वाक्यपदीय के लेखक के बारे में कोई विवाद नही है। ऐतिहासिकों को सन्देह है कि शतकत्रय के लेखक भर्तृहरि वैदिक है और वाक्यपदीय के रचयिता भर्तृहरि वैदिक है
और वाक्य पदीय के रचयिता भर्तृहरि बौद्ध है। किन्तु बहुमत दोनों के लेखक भर्तृहरि को एक तथा वैदिक ही मानने लगा है।
इस समय भर्तृहरि का एक मात्र ग्रन्थ 'वाक्यपदीय' ही उपलब्ध है। जो अत्यन्त महत्वपूर्ण है इसमें तीन काण्ड है- ब्रह्मकाण्ड, वाक्यकाण्ड, पदकाण्ड। प्रथम काण्ड में शब्दाद्वैतवाद का विवेचन किया गया है। वाक्यपदीय के प्रथम दो काण्डो पर भर्तृहरि रचित एक वृत्ति भी है और ब्रह्मकाण्ड पर अम्बाकर्ती नामक टीका रघुनाथ शर्मा द्वारा लिखा गया है। महाभाष्य की टीका दीपिका, शब्दधातु समीक्षा, त्रयशतक और भट्टिकाव्य भी भर्तृहरि के ग्रन्थ बताये जाते है। शब्दधातु समीक्षा उपलब्ध नही है।
वाक्यपदीय के कई अंश लुप्तप्राय है। इसके द्वितीय काण्ड के ७६ कारिकाओं के व्याख्यान में श्रीपुण्यराज ने लक्षण समुदेश और वाधसमुद्देश की चर्चा की है। लक्षण समुद्देश तो उस समय भी लुप्तप्राय ही था।' पुण्यराज ने भी इसको माना है।'
भर्तृहरि का यह वाक्यपदीय ग्रन्थ अद्वैतप्रस्थान (उपदेशकग्रन्थ) में शब्दाद्वैतवाद का समर्थक है। शब्द ही अद्वितीय ब्रह्म है। यह इस ग्रन्थ में प्रतिष्ठापित किया है।
। भाट्टिकाव्य टीकासु जयमगला परित्यज्यान्यासु सर्वासु टीकासु स्पष्टतो भर्तृहरि रुदितः। 2 दृष्टव्य- आचार्य भर्तृहरि बौद्ध इति पक्षे श्री वाचस्पतिमिश्र विरचित तत्वबिन्दुस्तट्टीका च। वाक्यपदीय २/७७ का० पुण्य० व्या० “एतच्च उपमा समुदेशेपि अर्थविचारणावसरे सविस्तरं प्रदर्शयिध्यति । वा० प०२/१२६-१/२ का पुण्य० व्या०
204