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वादरायण के साथ काश्यप के मत का उल्लेख है, इससे अचार्य काश्यप की महत्ता एवं प्राचीनता प्रकट होती है।
महाभारत १३ १३१६ १५६ में भी काश्यप का उल्लेख मिलता है। राजा नान्यदेव ने स्वनिर्मित सरस्वती हृदयालंकार नामक नट्यशास्त्र की टीका में यत्र-तत्र काश्यप का उल्लेख किया है चित्र विद्या में कुशल काश्यप की चर्चा भी कहीं मिलती है।
इस प्रकार उपर्युक्त ऋषियों के अतिरिक्त जिन्होनें विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं का प्रचार किया था उनमें असित, देवल, गर्ग जैगीषव्य, पराशर और भृगु के नाम विशेष रूप से उल्लिखित किये जा सकते हैं।
(ण्ड ग) प्राग शद्वेतवाद का व्यवस्थित इतिहास
___प्राग अद्वैत वेदान्त के आर्ष अचार्यों के यत्र-तत्र प्राप्त विचारों में किसी दार्शनिक सिद्धान्त का पूर्ण व्यस्थित विवेचन प्राप्त नहीं होता है, बल्कि विभिन्न दार्शनिक पद्धति का बीज मात्र ही है मिलता है। किन्तु इन प्राचीन आचार्यों के अतिरिक्त अद्वैतवाद के संस्थापक शड्कराचार्य के पूर्ववर्ती कुछ अन्य आचार्य भी मिलते हैं। जिनकी रचनाओं में अद्वैत वेदान्त की सूक्ष्म विचार दृष्टि का तथा व्यावस्थित दार्शनिक विचारधारा का भी संकेत मिलता है। इसस प्रकार शङ्कराचार्यके पूर्ववर्ती चौदह आचार्य हुये थे जिनमें से ग्यारह आचार्यों का नाम श्री यामुनाचार्य की 'सिद्धत्रयी' में तथा श्री रामानुजाचार्य के 'वेदार्थ संग्रह में तथा श्री निवास दास के 'यतीन्द्रमत दीपिका' में भी उल्लिखित मिलता
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