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महत्त्व को बढ़ाने के लिए के लिये ऐसा किया हो। जैमिनि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास के अन्यतम शिष्य थे।
आचार्य जैमिनि भी मीमांसा सूत्र के लेखक के नाम से विख्यात हैं। प्रो० विधुशेखर भट्टाचार्य का मत है कि इन्होंने ब्रह्मसूत्र की रचना की थी।"
कहा जाता है कि अचार्य जैमिनि ईश्वर के अस्तित्व को नहीं मानता है। परन्तु वादरायण के इस सूत्र के आधार पर प्रतीत होता है कि आचार्य का मन्तव्य इससे बिपरीत रहा होगा | वादरायण सूत्र का प्रसंग है, आत्मा ब्रह्म साक्षात्कार होने पर मोक्ष में किस रूप से रहता है? इस विषय पर जैमिनि का मत है कि वह 'ब्राह्मरूप' से रहता है (४।४।५ )। इस पद का अर्थ ब्रह्म सम्बन्धी अथवा ब्राह्म रूप- जो कुछ किया जाय, उससे इस मान्यता में कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है कि अचार्य जैमिनि ब्रह्म के अस्तित्व को स्वीकार करता है। अन्यथा वादरायण उसके नाम से जीवात्मा के 'ब्रह्म' रूप का निर्देश न करता। जैमिनि निरीश्वरवादी है यह प्रवाद किस आधार पर है यह विचारणीय है।
__श्री मुरलीधर पण्डेय ने अपने ग्रन्थ शङ्करातप्रागद्वैतवादः में लिखा है- 'इति सूत्रस्य शाङकरभाष्ये भामत्यां च जीवपरमात्मनोरैक्यमुक्तम्- "निश्चिते च पर्वपरलोचन वशेन परमात्मपरिग्रहे तद्विषय एव वैश्वानरशब्द: केनचिद् योगेन वर्तिष्यते। विश्वश्चाय नरश्चेति, विश्वेषा वायं नरः, विश्वे वा नरा अस्येति विश्वानरः परमात्मा सर्वात्मत्वात्" विश्वानर एवं वैश्वानरः 'अत्र परमात्मा सर्वात्मत्वात् दूत्युक्त्या जीवब्रह्मणे भेदः
घ. अन्यार्थ हि जैमिनिः प्रश्नव्याख्यानाभ्यामतिचैवमेके। ङ. धर्म जैमिनिरित् एव । ब्र० सू० ३।२।४० च. शेषत्वातत्पुरुषार्थवादी यथान्वेष्विति जैमिनिः । ब्र० सू०३।४२ छ. परामर्शजैमिनिश्चोदना चापवदति हि। ब्र० सू० ३।४ १८ ज. तद्भूतिस्य नतद्भावो जैमिनेरपि नियमातद् रूपाभवेभ्यः । ब्र० सू०३।४।४० झ. परं जैमिनिर्मुख्यत्वात् । ब्र० सू० ४।३।१२ ञ. ब्रह्मणेन जैमिनिरूपन्यसिदिभ्यः। ब्र० सू०४१४५
ट. भावं जैमिनि निर्विकल्पलभनंनत् । ब्र० सू० ४।४।११ 'B. Bhatyacharya: Agam Sastra of Gaudpada, Introduction.
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